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पञ्चक्खाण. सूत्र |
७५
धारणा, भावओ गं जात्र गहेां न गहेज्जामि, छले न छलेज्जामि, अरण केवि रोगायंकेण वा एस मे परिणामो न परिवडइ ताव अभिग्गहो, अण्णत्थणा भोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व- सेमाहि-वत्तियागारेणं वोसिरइ ॥ १५ ॥
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५५ - पच्चक्खाण आगार संख्या ।
दो चेव मुकारे, आगारा छच्च हुति पोरिसिए । सत्तेव य पुरिमड्ढे, एगासणयम्मि अव ॥ १ ॥ सत्तेगट्टाणस्स उ, अद्वेव य अंबिलम्मि आगारा। पंचेव अभत्तट्ट े छप्पाणे चरिम चत्तारि ॥ २ ॥ पंच चउरो अभिग्गहे, निवीए अनव य आगारा । अप्पावरणे पंचउ, हवंति सेसेसु चत्तारि ॥ ३ ॥
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