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अभय रत्नसार।
१२-दिवसचरिम-दुविहाहार-पच्चक्खाण । दिवसचरिमं पच्चक्खाइ, दुविहंपि आहार असणं, खाइमं; अणत्थ० सह० महः सव्व. वोसिरइ ॥ १२॥
१३-पाणहार-पच्चखाण पाणहार दिवसचरिमं पच्चक्खाइ, अन्नस्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्व-समाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ ॥१३॥
१४-भवचरिम-पच्चखाण भवचरिमं पच्चक्खाइ, तिविहं चउव्विहंपि आहारं असणं, पाणं, खाइम, साइमं,अराणत्या सह० मह० सध० वोसिरह ॥ १४ ॥
१५-देसावगासिय-पच्चक्खाण अहंणं भंते ! तुम्हाणं समीवे देसावगा. सियं पच्चक्खामि दवओ, खित्तो, कालो, भावो। दव्वओ णं देसावगासियं, खित्तो णं इत्थ वा अण्णत्थ वा, कालो णं जाव
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