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Jaina Literature and Philosophy
[35.
Author.- Śaśī:( ? ), pupil of Purnananda. Subject.-- Glorification of Bala-Tripura, a goddess, in Gujarati. Begins. - fol. 32॥ दहा ।।
. प्रणमी पास जिणंदपद श्रीसदगुरु धरि ध्यान । बालात्रिपुरा निचुं(बु) माता! यो बहुमान ॥१॥ विविध बंद कुसुमेरत्तं शुधभाव मकरंद ।
तुझ गुणसोभित अतै सरस फूलमाल समछंद ॥२॥ Ends.-- fol. 33
तुं लछीथी अधिकी देवी
सेवकनी प्रतिसार करेवी। सघली वातनो मान सुधारे
माता जयलछी विस्तारे ॥ ३६ ॥
कलश । जयलछी विस्तार मात ! तुझथी थई आवे माणिमाणिकभंडार पुत्र पौत्रादिक पाये। कामधेनु कल्पद्रु देवमणि लहै शुभग जन जे सेवे बहु भक्ते
___ मात त्रिपुराई दिन दिन मानस मान विद्या लहे। सदा चरणयुग सेवता पुणानंद गुरु शशि कहे . ___ जयतु त्रिपुरादेवता ॥ ३७॥ इति श्रीबालात्रिपुराछंद संपूर्णः ॥
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बालात्रिपुरापद्धत्यादि
Bālātripūrāpaddhatyādi
575 (45). No. 352
1895-98. Extent.- fol. 39+ to fol. 39". Description.- Almost complete. For other details see Namaskara.
mantra (Vol. XVII, pt. 3, No. 737). Author.- Not mentioned. Subject.- Names (?) of Bala-Tripura and some incantations
(mantras)..