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. Jaina Literature and Philosophy
[596.
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17.
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९ सूरप्रभस्तवन foll. 4a-40 (१५ (ई)श्वरस्तवन fol. 6. १० विशालस्तवन , 40-5 |१३ नमिप्रभस्तवन foll. 6-7" ११ वज्रधरनस्तवन fol. 5 १७ वीरसेनस्तवन fol. 7.
१२ चंद्राननस्तवन fol. 5-5°१८ महाभद्रस्तवन ,7° 5 १३ चंद्रबाहुस्तवन , 50-60 | १९ देवयशस्तवन , 70-8. १४ भुजंगस्तवन , 64-6° | २० अजितवीर्यस्तवन foll. 8.
This Ms. contains 29 additional works as under :(1) पञ्चभावना
foll. 8 to 12b (2) कल्याणप्राप्ति (1)
130 (3) दोधकबावनी
15. (4) नवपदस्तुति No. 583 , 15. (5) मनगुप्त(प्ति)सज्झाय
16 (6) वचनगुप्त(लि)सन्झाय fol. 160
(7) कायगुप्त(ति)सज्झाय 18 (8) अध्यात्मगीता Vol. XVIII, pt. 1, No. 88
foll. 17° , 130 (9) परमार्थपन्थ (?)
194
19. (10) अध्यात्मफाग Vol. XVIII, pt. 1, No. 93 fol. (11) भवसिन्धुचतुर्दशी (12) कर्मछत्तीसी
foll. 20° to (13) अध्यात्मबत्तीसी Vol. XVIII, pt. 1, No. 90
foll. 22°
220 (14) अज्ञातनामधेय (15) ध्यानबत्तीसी
250
26. 25 (16) तिथिषोडशी (17) नामनिर्णयनिधान
270 (18) भवस्थाष्टक Vol. XVIII, pt. 1, No.
foll. ( 19 ) षड्दर्शनाष्टक ___fol. 28° (20.) जिनधर्मस्वरूप
foll. (21) दश बोल
स्थानकसज्झाय
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