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Jaina Literature and Philosophy Begins.-- fol. 1. ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
परम पुरुष प्रभू पास जिन सरसति सदगुरुपाय वंदी गुण लीलावती बोलुं बुध बनाय १ लीलालहिर लीलावती सुमति विलास समुद्र
दिग्य गाशुं प(ए) द(दं)पती जे उत्तम गुणे अक्षुद्र २ etc. Ends.- fol. 150
'तप' गच्छना राजधानी केरो श्रीराजविजयसूरीराया जी। श्रीरत्नविजयसूरिवर तसु पाटे 'मेरु' समी जस मीजस माजा जी ३॥ गुरुमा हरिरत्नसूरी गिरूउ जीवहिरमां जिम हीरो जी तस पाटि जयरत्नसुरिंदो 'मंदर' गिरि परि धीरो जी ४ संप्रत भावरत्नसूरी प्रतपे श्रीहीररत्नसुरि केरो जी पंडीत लबधिरत्न माहामुनीवर वारु शिष्य वडेरा जी ५ तसु अनुचर 'वाचक'पदधारी श्रीसिधिरत्न सुषकारी जी श्रीमेघरत्न गणिवर तसु विनीतजीअमररत्न भाचारी जी ६ शिवरत्न तसु शीश सवाया पांमी तास पसाया जी ए में वारु रास बणाया आज अधिक सुष पाया जी ७ वरस सतर से सतसठि (१७६७) आसो वदि छवि(ही) निं सोमवारि जी मृगशिर नक्षत्र अनें शिव जोगें गाम 'उनाऊ'भा मका(शा)र जी ८ 'भीडभंजन' प्रभू पास प्रसादि लीलावतीनी लीलाजी सुमतिविलाससंजोगे गांई सुणता आपी शिवलीलाजी ९ ए कथा जे भावि भणस्य एकसना साभलस्य जी दुष तेहना दूर टलस्य मनना मनोरथ फलस्यें जी १० 'धन्यासि' रागें सोहावी एकवीसमी ए ढाल जी उदयरतन कहि आज में पामी सुष संपति सुष सील जी ११ इति लीलावतीसुमतिविलासरास संपूर्णः ॥
संवत् १८५७ना कार्तिक वदि ९ वार मंगल दिने लिष्यो छै श्री धोराजी' मध्ये ॥ पुज ऋषि श्री५ वेलजी तशिष्य पुज ऋषि श्रीप देवचंदजी