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________________ 32 Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpor. (Jodhpur-Collection) 2954/35508 ज्योतिषरत्नमाला राजस्थानी टीका सहित PPENING: श्रीजिनाय नमः । प्रभवति विरतिमध्यज्ञानंवंध्यानितांत , विदितपरमतत्त्वा यत्र ते योगिनोपि ।। तमहमिदनिमतं (निमित्तं) विश्वजन्मा तयानामनुमितमभिवंदे सग्रहैः कालमीशं ॥१॥ अथ रत्नमाला रो बालाबोध समलाइ समझावरणरे वास्ते वार्तारूप लिखु छु। तिण काल नु नमस्कार जिण काल री उत्पत्ति विचै नै छेहड़ो कोई योगीस्वर ही न जाणं । जिको जोगीश्वर आत्मा रो तत्त्व जांरण छ । उण काल ने न जाण। इण संसार रो निमत्त कारण छ । संसार री उत्पत्ति स्थिति प्रलय रो निमित्ति कारण छै। तो कोई कहसी काल छै नही । ते काल छ पिण प्रत्यक्ष नहीं। पिण नक्षत्र रासि ग्रहै करि नै अनुमान कीजै छ । सुकाल सगळां ही रो स्वामी छ नैं सगळां ही रो कारण छै ।।१।। COLOPHONIC: इति श्रीपतिभवृविरचितायां ज्योतिषरत्नमालायां देवप्रतिष्ठाकरणं विशतमं ॥२०॥ संवत् १७६६ फागुणमासे कृष्णपक्षे चतुर्दशमी शनिवासरे । पं केसरविजय तत् सिष्य चेला खुस्यालविजयेन पठनार्थ । श्री १०८ सिद्ध विजयजी गुरुभ्यो नमः ॥ श्रीरस्तु ॥१॥ 3065/35747 शतश्लोकस्यटीका 'सुबुद्धिवल्लमा' 'OPENING: श्रीगणेशाय नमः ॥ प्रणिपत्य परं ब्रह्म गणकेंदुस्त्रिविक्रमः । मुनिप्रणीतमखिलं व्यवहारं प्रवक्ष्यति ॥१॥
SR No.018093
Book TitleCatalogue Of Sanskrit And Prakrit Manuscripts Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOmprakash Sharma, Brijesh Kumar Singh
PublisherRajasthan Oriental Research Institute
Publication Year1984
Total Pages506
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size30 MB
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