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________________ Catalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts, Pt. XVIII (Appendix) 509 पंचाचार विचार--- त आचरण करावे, पढे पढावं सुगम पंथ ध्यायक दरसावै । वसु वीस मूल गुण मादरै, मुक्ति पंथ साधन सदा । स्याद्वाद न्याय मंडित गिरा, मन वचन तन नमि करि मुदा ॥१॥ ॥ दोहा ।। गोतम गण को आदि दे, महाकवी गणराय । श्रुतस्कन्धधारी नमों, बुद्धि देहु अधिकाय ॥२॥ मंगल होने के अथि, देव धर्म गुरु पार। . करौं वचनिका ग्रन्थ की, भविजन को सुखदाय ॥३॥ । छन्द छप्पै ॥ वदन घ्राण द्रग रसन करण कर क्रम क्रम करिया । गज करि रस शशि बारण धरा रस इक नय धरिया । असित वर्ण तन वदन सात विष निर्गम इनि त । अमृत एक मुख सवै जगत जनम रहि न तिनि त । रम एक प्रभू मो उर वसो, विघ्न हरो मंगल करो। वास चरण भव भव मिलो, लीला भवसागर तरो ॥४॥ ऐस' मंगल करि अब श्रीसूक्तमुक्तावली ग्रन्थ का छन्दोबन्द वचनिका प्रारम्भ करिये है। तहां प्रथम ही स्वामी सोमदेव संस्कृत ग्रन्थ की निर्विघ्न समाप्ति के अथि श्रीपार्श्वनाथ स्वामी के चरण कौं नमस्कार पूर्वक, श्रोतानि कौं आशीर्वाद पूर्वक मंगलाचरण का काव्य कहै है। ॥काव्यं शार्दूल विक्रीडित छन्द ।। सिन्दूरप्रकरस्तपः करिशिरः कोडे कषायाटवीदावाचिनिचयः प्रबोधदिवसः प्रारम्भसूर्योदयः । मुक्तिश्रीकुचकुम्भकुङ्क मरसः श्रेयस्तरोऽपल्लवप्रोल्लासक्रमयोर्नखद्य तिभरः पार्श्वप्रभो पातु वः ॥१॥ ।। कवित्त । सो....ति तन तप गञ्जराज सीस सिन्दूरच्छवि, बोध दिवस प्रारम्भ करन कारन उदोत रवि । मंगल तरु पल्लव कषाय कंतार हुतासन,
SR No.018086
Book TitleCatalogue Of Sanskrit And Prakrit Manuscripts Part 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Jamunalal Baldwa
PublisherRajasthan Oriental Research Institute
Publication Year1984
Total Pages634
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size32 MB
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