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________________ 508 Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. (Jaipur Collection) उपाध्याय सिद्धान्त पाठकारक प्रवीना अति । निज सिद्ध रु साधन करत, साधु परम मंगल करण । मन वचन काय लव ल्याय, नित भागचंद वन्दत चरण ।।२।। ॥ छप्पै ॥ गोपाचल के निकट सिंधिया नृपति कटकवर, जैनीजन बहु वसह जहां जिनभक्ति भाव भर । तिन मैं तेरहपंथ गोष्ठ राजत विशिष्ठ अति, पार्श्वनाथ जिन धाम रच्यो जिन सुभ उतंग अति तहां देश वचनिका रूप यह, भागचंद रचना करिय । जयवंत होउ सतसंग नित, जा प्रसाद बुधि विस्तरिय ॥३॥ ॥ दोहा ॥ संवत्सर गुनईसस, द्वादश ऊपर धार (१९१२)। दोजि कृष्ण आषाढ़ की, पूर्ण वचनिका सार ॥४॥ COLOPHON: इति श्रीउपदेश सिद्धान्तरत्नमाला नाम ग्रन्थ की वचनका समाप्त भई । Post-colpohou : मीति पोस शुक्ला ३ शनीश्चरवार संवत् ४१ का मैं लिख्यी जयनग्र मध्ये सुवालाल सरावगी नै शुभमस्तुः ॥ ई शास्त्र की नीछरावल सुवालालजी भरपाई लिछमीनारायण मीश्र सु। 1948/1880. सूक्तिमुक्तावली-सभाषावचनिका OPENING: अथ सूक्तमुक्तावली संस्कृत ग्रंथ की छंदबंद देशभाषामयवचनिका लिखीये है। तहां प्रथम ही पंचपरमेष्ठी कू नमस्कार करिये हैं । ॥ छन्द छप्पै ॥ करत धाति गण घाति प्राप्त गुण चारि महोत्तम वसु गुण मंडित सिद्ध बुद्ध गुण अमल जगोत्तम ।
SR No.018086
Book TitleCatalogue Of Sanskrit And Prakrit Manuscripts Part 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Jamunalal Baldwa
PublisherRajasthan Oriental Research Institute
Publication Year1984
Total Pages634
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size32 MB
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