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________________ 510 Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. (Jaipur-Collection) बहु गुन रत्न निधान मुक्ति कमला कमलासन । इहिं विधि अनेक उपमा सहित, अरुन वरन सन्ताप हर । जिन राज पाय मुख जोति भर, नमत बनारसी जोरि कर ॥१॥ ॥ अर्थ ॥ पार्श्व प्रभू जे है तिनि के जे चरणारविन्द तिनि के जे नख तिनि की जो 'द्य ति' कहि ए कान्ति ताका जो 'भर' कहिए समूह सो 'व:' युष्माकं कहिए तुम जै है तिनि कौं 'पातु' कहिए रक्षा करो। ए तो प्राचार्य के आशीर्वाद पूर्व के वचन है । अब. भगवान के चरण नि के नखनि की कान्ति के समूह कौं उत्प्रेक्षालंकार रूप उपमा कहै है। तहां प्रथम ही 'तपःकरिशिरः कोडे सिन्दूरप्रकरः' कहिए कीया जो भगवान नै उग्र तपश्चरण सोई भया हाथी ताका जो शिर ताका जो क्रोड मध्यभाग ता विर्षे सिन्दूरप्रकर कहिए सिन्दूर का समूह ही है। बहुरि कैसे है ? 'कषायाटवीदावाचिनिचयः' कहिये कषायरूप जो वनि ताके भस्म करिवे कौं दावाग्नि की ज्वाला समान है। बहुरि कैसे हैं ? 'प्रबोधदिवसः' कहिए प्रबोध ज्ञान सोई भया दिन ताके प्रारम्भ करने कौं सूर्य का उदय हैं । बहुरि कैसे है ? 'मुक्तिस्त्रिकुचकुम्भकुङ्क मरसः' मुक्ति सोई भई स्त्री ताके जे कुचकुम्भ तिनि के केशरिका रस है मानौं । बहुरि कैसे है ? 'श्रेयस्तरोपल्लवप्रोल्लासः' कल्याण रूप वृक्ष की कुपल का उझम है मानौ। ॥ भावार्थ ॥ भगवान श्री पार्श्वनाथ के चरणारविन्द के नखनि की कांति कौं समूह सौ तुमारी रक्षा करो ॥१॥ CLOSING : ॥ मालिनी छन्द ॥ अमजदजितदेवाचार्यपट्रोदयाद्रिधु मणि विजयसिंहाचार्यपादारविन्दे । मधुकरसमा यस्तेन सोमप्रभेण, व्यरचि मुनिपराज्ञा सूक्तिमुक्तावलीयम् ॥१०॥ ॥ अर्थ ॥ जो अजितदेव नाम आचार्य का पाटरूप जो उदयाचल पर्वत ता विष सूर्य समान ऐसा विजयसिंह नाम आचार्य का चरण कमल विष भ्रमर समानपना
SR No.018086
Book TitleCatalogue Of Sanskrit And Prakrit Manuscripts Part 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar, Jamunalal Baldwa
PublisherRajasthan Oriental Research Institute
Publication Year1984
Total Pages634
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size32 MB
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