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श्रावक भीमसिंह माणेक. नारा नास्तिकजनोने पीयुषसम उपदेशरुप तथा देव द्रव्यना उपभोगथी थती हानी तथा वृक्षोथी थता शुभाशुभ- फळ तथा भिक्षानुं खावाथी थता अवगुणो विषेनां द्रष्टांतो.
०-४-० ११७ उत्तमचरित्र कुमारनो रास-वस्त्रदान फल -
हात्म्य रुप महा प्रतापी पुरुषनो ढालबंध चरित्र. ०-४-० ११८ शेठ कयवनाशाहनोरास-सौभाग्य वृद्धि. ०-४-० ११९ रात्रिभोजन परिहारक रास-रात्रिभोजनना
परिहारथी उत्पन्न थएला शुभ फळने दर्शावनारो नथा सुदृष्टी जनोने रात्रिभोजन निषेध निमित्ते द्रष्टांतरुप ज्ञान आपनारो ग्रंथ.
०-३-० १२०धर्मबुद्धि मंत्री तथा पापबुद्धि राजानोरास
धर्मथी थतां शुभ फलो तथा पापथी थतां अनिष्ट फळोनुं विवेचन करनारं तथा धर्ममां प्रवृत्ति अन पापमां निवृत्ति करावनारो ग्रंथ तथा सज्जनना
दोहा वगेरे. १२१व्यापारी रास तथा उपदेश रास-आ पुस्तकनी
अंदर व्यापार करवा निकळेला जीवरुप शेठीआना रुपथी चोराशीलाख योनीरूप बंदरो बदलवा वगेरे
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