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श्रावक भीमसिंह माणेक. तेओना उपदेशको, प्रतिमा अने जिनालय करवामां हिंसा थाय छे, तेमज प्रतिमापूजनमां पण हिंसा थायछे, एवा कुतर्कवाला उपदेशनी जालमां मंदबुद्धिवाला पाणीओने फसावता हशे अने तेओने जिनमंदिर अने जिनप्रतिमाना द्वेषी बनावी सत्यमार्गथीभ्रष्ट करता हशे, त्यारे अतिकरुणा अंतःकरणथीभावदयायुक्त वृत्तिथी, तेवा प्राणीओने सत्यमागमां लाववाने वास्ते ते महा । उपकारी महात्माए आ ग्रंथनी रचना करी इशे. __ आ ग्रंथ उपर उपाध्यायनाए पोतेज ग्रंथना गूढ आशयने प्रदर्शित करनारी अन नेगमादि नयोना यथार्थ स्वरुपने समजनारा विद्वान वाचकवर्गने उपकारी तथा चमत्कार उत्पन्न करनारा मोटा टीका रचेली छे, ते टीका भाषांतर आ ग्रंथमा करवामां आवेलुं नथी, परंतु श्रीभावप्रभसूरिए पाताना शिष्य ज्योतीरत्नना हितने वास्ते आ मूल ग्रंथ उपर जे लघु वृति करेली छे, तेनुज '
भाषांतर आ ग्रंथमां करवामां आवे छे. ०-१२-. ३६ पांत्रीसबोलनो थोकडा-शिखामणना बोल. ०-!-4 ३७ बृहदालोयणा- लालाजी कृत.) ०-१-4 ३८पंचप्रतिक्रमणसूत्र एमां श्री तपागच्छीय श्रावक
समाचारीनां दैवसिकादिक पांच प्रतिक्रमण संबंधी सर्व
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