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श्रावक भीमसिंह माणेक. गुरुनु, उद्यमर्नु, वगेरे घणी बाबतोपर वर्णन छे. ते अंथ मुल सस्कृत तथा गुजराती सरळ भाषांतर छे. आ ग्रंथ मुनिमाहाराजनेव्याख्यानमां घणोज उपयोगी
होवाथी पाना आकारे छपावेलुं छे, ३५ श्रीप्रतिमाशतक( श्रीमद् यशोविजयजी उपाध्याय
कृत)आ ग्रंथना तमाम काव्यमां हेतु-युक्ति अने दृष्टांतो एवा न्याय पुरःसर आपवामां आव्याछे के वांचनारने ग्रंथकारनी ताकि शक्तिनेमाटे अत्यंत चमत्कारलागशे. सिद्धांतमा जे जे स्थल प्रतिमा अने जिनालय संबंधी अधिकार जे जे स्वरूपे छे तेनो यथार्थ भाव आ ग्रंथमा एवी रीते प्रदर्शित करलो छ के तास्थ वृत्तिथी अवलोकन करनारा न्यायबुद्धिवालान प्रतिमाद्वषांनी मूढता साक्षात् जगाइ आवशे अने प्रतिमाने लंपनारा मात्र स्वकपाल कल्पित रचनाीज प्रतिमानो निषेध करे छ, परंतु तेओना निषेधमां नथी सिद्धांतनो आधार के नथी न्याययुक्त हेतु, युक्ति के प्रमाणवाली समजशक्ति. . ग्रंथमां बहु सूक्ष्मदृष्टिथी प्रवेश करतां वांचनारने सेहेज लागशे के उपाध्यायजीना समयमांज्यारे लुंपा. कमतियो जेने वर्तमानमा ढुंढीआमतिकहेवामां आवे छे,
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