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श्रावक भीमसिंह माणेक. नहीं करवी, परिग्रह नहीं राखयो, रात्रीभोजन नहीं करवू, कंदमूल न खावु, अणगलपाणी नहीं पीवू,
विगेरेनुं स्वरुप मूल अने अर्थसहित छे. ..-८३० जलयात्राविधि-आ ग्रंथमा जलयात्रानी, अष्टोतरी
स्नात्रनी, लघुस्नातनी, ग्रहदिग्पालना पूजननी, जिनमंदिरपर कलश ध्वजा विगेरे चडाववानी, तथा बीजी
अनेक विधिमओ दाखल करेल छे. ३१ प्रतिष्टाकल्प-आ ग्रंथमा जिनेश्वर भगवाननी प्रति
मानी प्रतिष्टा करवानी संपूर्ण विधि छे. तथा प्रतिष्टा करनार श्रावक तथा करावनार गुरु ( माहाराज ) केवा होवा जोइए तेनुं विस्तारथी वर्णन आपेलुं छे. (पाना आकारे.)
०-८३२ त्रैलोक्यप्रकाशाख्यं चैत्यवंदन चोवीशी
तथा चउसरणपयन्ना मूल अने भाषान्तर सहित
तथा अध्यातम बावनी अने ज्ञानपचीसीना दोहा वगेरे.०-६३३ मेघमालाविचार- मूल अने भाषान्तर. ३४ हिंगुलप्रकरण-आ ग्रंथमा अढार पापस्थानक
तथा छ व्यसन- डंक वर्णन पण रसिक अने मनने . E करे तेवो छे. ते शिवाय चार भावना, पुजार्नु,
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