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श्रावक भीमसिंह माणेक. साथे छपावी प्रसिद्ध करेला आ काव्यग्रंथथी दूर थई छे. वळी आकाव्यग्रंथ बीजा काव्यांथो करतां कवित्व
शक्तिमां चडीआतो होवार्थी जैन बंधुओने उप्योगीछे. १-१२-० १६ श्री हरिभद्रसूरि कृतान्यष्टकानि. (मूल, तेनो
अर्थ, अने टीकानो भावार्थ. संस्कृतपरथी गुजराती भाषांन्तर.-आ ग्रंथम निचे प्रमाणे बत्राश विषयो छे. (१) महादेवाष्टकम्. २) स्नानाष्टकम्. (३) पूजाष्टः कम्. (४) अग्निकारिकाष्टकम्. (५) भिक्षाष्टकम्. (६) प्रछन्न भाजनाष्टकम्. (७) प्रछन्न भोजनाष्टकम. (८) प्रत्याख्यानाष्टकम. (९) ज्ञानाष्टकम्. (१०) वैराग्याष्ट कम्. (११) तपोऽष्टकम्. (१२) वादाष्टकम्. (१३) धर्मवादाष्टकम्, (१४) एकांत नित्यपक्ष खंडनाष्टकम्. (१५) एकांतानित्यपक्ष खंडनाष्टकम्. (१६) नित्यानित्यपक्ष मंडनाष्टकम. (१७) मांसभक्षण दूषणाष्ट कम्. (१८) अन्यदर्शनीय मत शास्त्रोक्तं मांसभक्षणाष्ट कम्. (१९) मद्यपान दूषणाष्टकम्. (२०) मैथुन दूषणाष्टकम्. (२१) सूक्ष्म बुद्धयष्टकम्. (२२) भाव शुद्धयष्टकम्. (२३) शासन मालिन्याष्टकम्. (२४) पुण्यादि चतुर्भग्याष्टकम्. (२५) पितृभक्त्यष्टकम्.(२६) महद्दान स्थापनाष्टकम्. (२७) तिर्थ कृद्दानाष्टकम्
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