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________________ ne. श्रावक भीमसिंह माणेक. तिर्थकर श्री सीमंधरस्वामिनी स्तुतिगर्भित साडी त्रणसो गाथार्नु अति अद्भूत स्तवन अर्थसहित छे. तथा श्री देवचंद्रजी कृत आगमसार, जेमा यथाप्रवृत्ति प्रमुख त्रण करणर्नु, सात नयनू, चार निक्षेपार्नु प्रमाणोनुं तथा सप्तभंगिनुं स्वरुप संक्षेपथी दर्शावेलुंछे. २-०-c ३ प्रकरणरत्नाकर भाग पहेलो. कटको बीजो भा ग्रंथमां श्री देवचंद्रजी कृत नयचक्रसार तथा भानंदघनजी कृत चावीशी तथा द्रव्यगुणपर्यायनो रास. ए रसिक ग्रंथो अर्थसहित छे. ४ प्रकरणरत्नाकर भाग पहेलो. कटको त्रीजो भा ग्रंथमां श्री यशोविजयजी कृत अध्यातमसार अने आठ द्रष्टिनी सझाय तथा समाधिशतक, समताशतक तथा दिक्पटना चोराशी बोल तथा चिंतामणी पार्थनाथजिन स्तोत्रं ए ग्रंथो अर्थ तथा बालबोधसहित छे. २-०५ प्रकरणरत्नाकर भाग बीजा मांहेलो सम यसार नाटक ( बनारशी कृत. )—आ ग्रंथमा पदलालित्यना तथा अर्थगौरवतादिक, जे काव्यना सारा गुण वर्णन कर्या छे, ते आ ग्रंथ वाचवाथी जणाशे. तेमज अलंकारवडे कविता सारी रीते भूषित करी छे. जो के आ ग्रंथ दिगंवरीनो रचलो छे, तो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018053
Book TitleShreeyakmuni Kayvanna Sumati ane Kumati Mitroni Katha ane Jain Dharmna Pustakonu Suchipatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1914
Total Pages300
LanguageGujarati
ClassificationCatalogue
File Size10 MB
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