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________________ १०६ श्रावक भीमसिंह माणेक मल, क्षार, नमक सकर, गुड आदि सैंकडो पदार्थाके गुणदोष, व्यायाम, वायुसेवन, आदि वैद्यक संम्बन्धी संम्पूर्ण बातों का वर्णन बडे विस्तार के साथ सरल भाषामें कोइ पांचसौ पृष्टोमें लिखा है. इसके सिवाय व्याकरण, सामान्य नीति, राजनीति, सुभाषित, ओसवाल, पोरवाल, महेसुरी जातियोंकी उत्पत्ति, बाहर वा चौरासी जातियोंका वर्णन, ज्योतिष, स्वरोदय, शकुनविद्या, स्वप्नविचार आदि अनेकानेक विषयोंका भी इसमें संग्रह है. एक बडेही अनुभवी विद्वानने अपने जीवनभर के अनुभवों को इसमें संग्रह करके सर्व साधारणके उपकारके लिये प्रकाशित किया है. यद्यपि इसका नाम जैनसम्प्रदाय से संम्बंध रखता है, परन्तु यथार्थ तो इसमें जिन विषयोंका वर्णन किया गया है, वे सबहीके लिये उपयोगी है. वैद्यक विषयका तो इसको एक अपूर्व ही पुस्तक समझना चा हिय. हम प्रत्येक गृहस्थसे आग्रह करते हैं कि, वह इस ग्रन्थकी एक एक प्रति मंगाकर अपने यहां अवश्यही रक्खें. और गृहस्थाश्रमकी शोभाको बढावे. क्योंकि इसका "गृहस्थाश्रम शीलसौभाग्य भूपणमाला " जो दूसरा नाम है, वह बिलकुल ठीक है. सब लोकोंके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018053
Book TitleShreeyakmuni Kayvanna Sumati ane Kumati Mitroni Katha ane Jain Dharmna Pustakonu Suchipatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1914
Total Pages300
LanguageGujarati
ClassificationCatalogue
File Size10 MB
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