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साचववानी पुरी आवडतना अभावे तथा योग्य व्यवस्थाना अभावे केटलाये महत्त्वना ग्रंथो कालक्रमे जीर्ण-शीर्ण नष्ट अथवा नष्टप्राय थइ गया छे. तेम छतां ये हजु पण नाना-मोटा लगभग २४००० हस्तलिखित ग्रंथो पाटणमा विद्यमान छे, पाटणमा ज श्री पंचासरा पार्श्वनाथ भगवानना देरासर पासे ज श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर नामनुं विशाळ तथा भव्य ज्ञानमंदिर बांधवानी श्री संघने प्रेरणा करीने तेमज पाटणना जुदा जुदा उपाश्रयो तथा श्रावकोना घरमा रहेला ग्रंथभंडारी तथा ग्रंथाने ते ते वहीवटदारोने अत्यंत कुशलतापूर्वक समजावीने ते ज्ञानमंदिरमां एकत्रित करवानुं भगीरथ कार्य स्व. पूज्यपाद प्रवर्तक मुनिराज श्री कांतिविजयजी महाराज, तेमना शिष्य स्व. पूज्यपाद मुनिराजश्री चतुरविजयजी महाराज, तथा तेमना शिष्य स्व. पूज्यपाद आगमप्रभाकर मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराजे घणां वर्षो पूर्वे क छे तेमज आ बधाने व्यवस्थित गोठववानुं तेमज तेना विगतवार सूचिपत्रो तैयार करवानुं काम पण तेमणे ज कयुं छे. तेमणे करेली आ अत्यंत महान् अने पवित्र श्रुतसेवाथी समग्र जैन संघ अत्यन्त अनुगृहीत थयेलो छे. तेमना आ महान् उपकारने समय जैन संघ क्यारे पण मुली शके तेम नथी.
केटलाये ग्रंथो अस्त-व्यस्त हता तेने तेणे केवी रीते व्यवस्थित कर्या, तेमज अनेक रीते सुरक्षित कर्मा वगैरे संबंधी अनेक अनेक रसप्रद हकीकतो जाणवा जेवी छे. आ कार्यमा अनेक अनेक रीते जोडायेला संकळायेला पू. पा. मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराजना शिष्य समान पं. अमृतलालभाई मोहनलाल भोजक, लक्ष्मणभाई हीरालाल भोजक वगेरे अनेक ते ते विषयना जाणकार निष्णातो हजु विद्यमान छे. आवी केटलीक हकीकतो लखी आपना पं. अमृतलालभाई भोजकने में खास जणान्युं छे. जो तेओ लखी आपशे तो आ प्रकाशनमां चतुर्थ भागमां तेनो समावेश करवानी अमारी खास भावना छे.
ताडपत्र तथा कागळ उपर जुदा जुदा समये लखाएला आवा २४००० ग्रंथोनी महत्त्वनी जरुरी विगत साथेनी सूचियादी पू. आ. प्र. मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराजे अनेक सहकार्यकरो जाणकारोनी मददशी जात देखरेख नीचे तैयार करावी हती.
पाटण श्री जैन संघना अधिकार नीचेना श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिरमां जेने प्रथाको अपायेला छे एवा २००३५ मुख्य ग्रंथांको विद्यमान छे कोई कोई एक ज ग्रंथांकमां नाना नाना अनेक ग्रंथो पण विद्यमान छे.
आपणा
आमा केटला ये ग्रंथो अमुद्रित अप्रकाशित पण छे. जे प्रकाशित थयेला छे तेमां पण घणा घणा ग्रंथोमां संशोधनने हजु पण अवकाश छे. शुद्ध पाठो तथा पाठांतरोनी दृष्टिए घणी ज महत्त्वनी सामग्री आ हस्तलिखित ग्रंथोमां छे.. संघमा अत्यंत प्रचलित नानी नानी कृतिओमां पण पाठोने शुद्ध करवानी सुंदर सामग्री आ हस्तलिखित ग्रंथोमां मळे छे. उदाहरणार्थ
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं आ पाठ प्रचारमां छे, ज्यारे लगभग बधां अथवा घणा खरां प्राचीन पानांओमां सर्वमङ्गलमङ्गल्यं' पाठ मळे छे.
उपाध्यायश्री यशोविजयजी महाराज विरचित श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथ भगवानना अब मोहे ऐसी आय बनी आ स्तवनमा 'कोपानल उपजावत दुर्जन मथन वचन अरणि..... जग में पद न धरन धरणी' आवो पाठ प्रचलित छे, पाटणना हस्तलिखित प्राचीन पानामां.... मथत वचन अरणि... धरत धरणी' आवो सुंदर पाठ मळे छे.
'एकादशी अति स्पडी, गोविंद पूछे नेम आ स्तुतिमा गणि हर्ष पंडित सीश एवो पाठ मळे छे. परंतु हस्तलिखित पानामा गुणहर्ष पंडित सीश एवो पाठ छे,
जो के संबोधप्रकरणमा मन्नह जिणाणमाणं मिच्छे परिहरड़ धर सम्मत्तं छविहआवस्यम्मि उज्रत्तो होइ पदिवस ||१|| आवो पाठ पण मळे छे, छतां मन्नह जिणाणं नी प्रचलित सज्झायना हस्तलिखित प्राचीन पानामां मन्नह जिणाणमाणमिन्छे परिहरह धरह सम्पत्तं छव्विहआवस्मयम्मि उड़ता होह पहदिवस ||१|| आवो सुंदर पाठ पण मळे छे. आपणामां प्रचलित मन्नह जिणाणं नी सज्झायमां आ पाठ वधारे सुसंगत छे.
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१. परस्पर पानां थोडा घणा अंशे चोंटी जवाथी लगभग नकामा थई गएला आवा केटलाक ग्रंथोने आधुनिक वैज्ञानिक रीते पानां छूटां पाडीनें उपयोगी बनाववानो प्रयत्न हमणां चाली रह्यो छे घणी महेनते तथा घणो खर्च द्रव्यव्यय करीने केटलाक ग्रंथो अंशतः उपयोगी कराया छे. धीमे धीमे आ कार्य चाली रह्युं छे. कारण के एमां घणो समय लागे छे.
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