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श्री शवेश्वरपार्श्वनाथाय नमः । श्री महावीरस्वामिने नमः । श्री गौतमस्वामिने नमः ।
पूज्यपादाचार्यमहाराजश्रीमद्विजयसिद्धिसूरीश्वरजीपादपधेभ्यो नमः । पूज्यपादाचार्यमहाराजश्रीमद्विजयमेघसूरीश्वरजीपादपद्येभ्यो नमः । पूज्यपाद-सद्गुरुदेव-मुनिराजश्री भुवनविजयजीपादपद्येभ्यो नमः ।
संपादकीय निवेदन
अनंत उपकारी परम कृपाळु अरिहंत परमात्मा तथा मारा अनन्त उपकारी सद्गुरुदेव तथा पिताश्री पूज्यपाद मुनिराजश्री भुवनविजयजी महाराजनी कृपाथी अणहिलपाटकापाटण)नगरस्थजैनग्रन्थभाण्डागारान्तर्गतानां हस्तलिखितग्रन्थानां सूचिः आ ग्रंथनां त्रण पुस्तको (Volumes I, II, III) ने १-२-३-४ भागमा प्रकाशित करीने श्रुतज्ञानप्रेमी जगत समक्ष रजु करतां आजे अमने घणो आनंद थाय छे.
आ सूचिनी संकलना स्व. आगमप्रभाकर पुण्यनामधेय पूज्यपाद मुनिराजश्री पुण्यविजयजी महाराजे करेली छे. आनो संक्षेपमा इतिहास आ प्रमाणे छे -
श्री शंखेश्वरजी तीर्थथी दक्षिणे १० कीलोमीटर दूर पंचासर नामनुं गाम आवेलुं छे. आजथी लगभग 1250 वर्ष पूर्वे, पंचासरमां ते समयना गुजरात राज्यनी राजधानी हती. जयशिखरी चावडानुं त्या राज्य हतुं. भुवड साथेना युद्धमा जयशिखरीनो पराजय थया पछी तेना पुत्र वनराज चावडाए अणहिलपाटक (अणहिलवाड) नामे नवु पाटनगर वसाव्यु के जे आजे उत्तर गुजरातना महेसाणा जिल्लामा पाटणना नामथी सुप्रसिद्ध छे. पंचासरगाममा जे पार्श्वनाथ भगवाननां प्रतिमाजी हतां तेमने पंचासरमांथी लई जईने वनराजे पाटणमां पधराव्यां जे आजे पाटणमां पंचासरा पार्श्वनाथ भगवानना नामे अत्यंत प्रसिद्ध छे. पंचासरगाममां अत्यारे तो मूलनायक रूपे श्री महावीरस्वामी भगवान् विराजमान छे.
आ पाटण नगर वर्षो सुधी गुजरातनी राजधानी तरीके रह्यु छे. अने प्रारंभथी ज जैन धर्मना महान् केन्द्र तरीके रघु छे. भीमदेव बाणावळी, सिद्धराज जयसिंह, महाराजा कुमारपाल आदिना समयमा पाटण जाहोजलालीना शिखरे पहोंचेलुं हतुं समग्र गुजरातनी राजकीय प्रवृत्तिमा केन्द्र स्थाने हतुं. नवांगीवृत्तिकार आचार्य भगवान् श्री अभयदेवसूरीश्वरजी महाराज, मलधारी आचार्य भगवान् श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज, विश्वविख्यात, कलिकालसर्वज्ञ आचार्य भगवान् श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज, महान् व्याख्याकार आचार्य भगवान् श्री मलयगिरिसूरीश्वरजी महाराज आदि महापुरुषोनी साहित्यिक प्रवृत्तिना केन्द्र तरीके पाटण ज रह्यं छे.
कलिकालसर्वज्ञ आचार्य भगवान् श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजनी प्रेरणा पामीने परमार्हत महाराजा कुमारपाले १८ देशोमां अमारिप्रवर्तन पाटण नगरमांथी ज करेलुं हतुं. आजे पण आ पाटणमां भव्य-अतिभव्य अनेक जिनमंदिरो विद्यमान छे. एक काळे सांस्कृतिक समृद्धिना शिखरे पहोंचेला अने राजकीय, धार्मिक तथा साहित्यिक आदि अनेक प्रवृत्तिओना केन्द्र स्थाने रहेला आ पाटण नगरमां प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथोनो विशाळ संग्रह होय ए तद्दन स्वाभाविक छे. ताडपत्र तथा कागळ उपर लखेला अनेकानेक ग्रंथोना भंडारो पाटणमां जुदा जुदा उपाश्रयोमा तथा व्यक्तिओना-श्रावकोना घरमां वर्षोथी विद्यमान हता.
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