________________
-
द्वितीय भागमा १४७९० थी १९७०६ सुधीनां ग्रंथांकोनी क्रमाङ्क, पुस्तकनुं नाम, पंत्रसंख्या, भाषा, कर्ता, श्लोकसंख्या, रचना संवत्, लेखन संवत्, स्थिति, लम्बाई-पहोळाई आ दश विगतो तथा महत्त्वनी टिप्पणीओ साथे सूचि आपेली छे. तथा १९७०७थी २००३५ सुधीना ग्रंथोनी क्रमांक, पुस्तकनुं नाम तथा पत्रसंख्या सूचवती अमे तैयार करेली संक्षिप्त सूचि आपी छे.
प्रथम भागमा जे प्रकाशक- निवेदन छपायेलुं छे ते ज अक्षरशः अहीं फरीथी पण आपेलुं छे. द्वितीय पुस्तक (Volume 2)मां सूचिपत्रना तृतीय भागमा १थी २००३५ ग्रंथांको जे प्रथम पुस्तकमां कमवार आपेला छे ते बधानो कोम्प्युटर द्वारा ज तैयार करावेलो अकारादिक्रम आपेलो छे.
तृतीय पुस्तक (Volume-3)मां चतुर्थ भागमा प्रारंभमां भाभाना पाडामा रहेला कागळ उपर लखेला ३००६ ग्रंथोनी १० विगतो साथे क्रमवार सूचि आपेली छे. ते पछी कोम्प्युटरथी तैयार करेलो बधानो अकारादिक्रम आपेलो छे. ते पछी संघवी पाडाना ताडपत्रीय भंडारनी प्रतिओनी विगतवार सूचि आपेली छे. ते पछी ए बधा ज ग्रंथोनो अकारादिक्रम आपेलो छे. ते पछी खेतरवसीना पाडाना भंडारनी ताडपत्रीय प्रतिओनी सूचि क्रमवार आपेली छे. ते पछी बधानो अकारादिक्रम आपेलो छे. ते पछी श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिरमा रहेला जे संघभंडार वगेरे भंडारोना ताडपत्रीय ग्रंथो छे तेनी क्रमाङ्कवार सूचि आपेली छे अने ते पछी ते बधानो अकारादिक्रम आपेलो छे. बधा अकारादिक्रमो कोम्प्युटर द्वारा ज अमे तैयार करावेला छे.
घणा घणा श्रमथी तैयार थयेला आ सूचिपत्रना चारे य भागनां प्रुफो खूब झीणवटथी अमारे चार-चार पांच-पांच वार वांचवा पडेला छे. आ घुफोनां वांचनमां मारा अंतेवासी मुनिश्री धर्मचन्द्रविजयजीए तथा खेतरवसीना पाडाना तथा संघभंडार आदिना ताडपत्रीय ग्रंथोनी सूचि तैयार करवामां मुनिश्री धर्मचन्द्रविजयजीना शिष्य मुनिश्री पुंडरीकरलविजयजीए घणो श्रम उठाव्यो छे. तेमने घणा घणा धन्यवाद घटे छे.
ते उपरांत (मारां संसारी मातुश्री) साध्वीजी श्री मनोहरश्रीजी (के जे सरकारी उपाश्रयवाळां मारां मोटा माशी स्व. साध्वीजीश्री लाभश्रीजी म.नां शिष्या छे) नां शिष्या साध्वीजी सूर्यप्रभाश्रीजीनां शिष्या साध्वीजी जिनेन्द्रप्रभाश्रीजीए पण आ प्रफो जोवामा घणी घणी सहाय करी छे. तेथी तेमने पण घणा घणा धन्यवाद घटे छे.
पाटणना मयूरभाइ व्रजलाल शाहे डाभडाना नंबरोना ग्रंथांको घणी महेनते लखी मोकल्या छे ते माटे तेमने पण धन्यवाद.
आ चारे य भागोना प्रकाशननी समग्र जवाबदारी उपाडी लेनार शारदाबेन चीमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, 'दर्शन । शाहीबाग, अमदावाद (Pin ३८०००४) ना ट्रस्टी शेठश्री अजयभाई चिमनलाल लालभाई तथा तेना संचालक (डीरेक्टर) पं. जितेन्द्रभाई बाबुलाल शाहने पण घणा घणा धन्यवाद घटे छे.
श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमंदिर, संघवी पाडानो ग्रंथभंडार, खेतरवसीना पाडानो ग्रंथभंडार, भाभाना पाडानो ग्रंथभंडार तथा संघनो ग्रंथभंडार आदि ग्रंथभंडारोना व्यवस्थापको के जेमणे आ ग्रंथभंडारो आज सुधी साचव्या छे तेमने पण धन्यवाद.
श्रीदीप सर्वीसीझना मालिक श्री मयंकभाई विमावाला तथा जितुभाई प्रेमचंद 'अरिहंत ' (झींझुवाडावाळा)ए घणा उत्साह तथा खंतपूर्वक आ कार्य पूर्ण सिद्ध कर्यु छे. ते माटे तेमने पण अनेकशः धन्यवाद.
आवा प्राचीन ग्रंथोना खजानाने व्यवस्थित करनार तेमज तेने सूचवता सूचिपत्रोने घणा घणा परिश्रमथी व्यवस्थित रीते तैयार करनार स्व. आगमप्रभाकर पूज्यपाद मुनिराजश्री पुण्यविजयजी महाराजनो समग्र जैन संघ जेटलो आभार अने उपकार माने तेटलो ओछो छे. तेओने अनेकशः वंदना सह धन्यवाद,
पंचासर (जिल्ला-महेसाणा) उत्तर गुजरात Pin - 382750 विक्रमसंवत् २०४७ प्रभुमहावीरनिर्वाणकल्याणकदिनम्।
पूज्यपाद-आचार्यदेव श्रीमद्विजयसिद्धिसूरीश्वरपट्टालंकारपूज्यपाद-आचार्यदेव श्रीमद्विजयमेघसूरीश्वरशिष्यरत्नपूज्यपाद-गुरुदेव-मुनिराजश्री भुवनविजयान्तेवासी मुनि जम्बूविजय
1. १६१६० ग्रंथांकमा नयचक्र ग्रंथ छे. विक्रम संवत् १७१४ मां ते लखेलो छे. तेनी पत्रसंख्या ४७५ छे. परंतु अमे तपास करीने जोयु तो छेल्ला छ पानां ज
तेमा नथी. अमारे मन एनु घणुं महत्त्व हतुं एटले अमे घणी घणी तपास करी पण ए पानां मळ्यां ज नहि, ज्यारे सूचि तैयार करी हशे त्यारे ए पानां हशे ज. आ रीते कोईक बीजां ग्रंथोमां पण पत्र संख्यामा गरबड थई होय ए संभव छे.
-
-
Jain Education Intemational
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org