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557.] The Svetāmbara Narratives
321 तत्शिष्य पुज ऋषि श्री५ प्रेमचंदजी तत्शीज्य । राअचंदेन लपीकृतं ॥ श्रीरस्तु ॥ कलाणमस्तु शुभं भवतु ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री Then in a smaller hand we have :
॥ अथः ॥ उषाणोः॥ ढालवो ढी(ढी')कवो ने फोलवा उलाः पे(पहे)रवो वा(वां )जणो ने 5 वालवो षो(खो)लोः
माथे करवला ने आणवू पाणी उजला लुगडा ने बेसवू घाणी। रात अंधारी ने बलदीया काला वढकणी नारि ने भागणे साला
वा(वां)की पाघडी ने पगरघु(खु) काणु तिम ठाली ठकराह ने बगलमा छाणु
10 Reference.- Published by Bhimsi Manek. For extracts and addi
tional Mss. see Jaina Gurjara Kavic ( Vol. II, pp. 404-406 and Vol. III, pt. 2, pp. I354-1355).
1 नदी के तळावना सूका तळियामां पाणी माटे खोदेलो खाडो ; वडवो. 2 चोरणो; इजार. 3 In several places there should be 'ळ' instead of 'ल'.
1 [J. L. P.)
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