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________________ 320 Jaina Literature and Philosophy [557. Begins.--"fol. 1. ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ दूहा ॥ परम पुरुष प्रभू पास जिन सरसति सदगुरुपाय वंदी गुण लीलावती बोलुं बुध बनाय १ लीलालहिर लीलावती सुमति विलास समुद्र दिव्य गाशु प(ए) द(द)पती जे उत्तम गुणे अक्षुद्र २ etc. Ends.- fol. 15 'तप' गच्छना राजधांनी केरो श्रीराजविजयसूरीराया जी। श्रीरत्नविजयसूरिवर तसु पाटे 'मेरु' समी जस मीजस माजा जी ३॥ गुरुमां हरिरत्नसूरी गिरूउ जीवहिरमां जिम हीरो जी तस पाटि जयरत्नसुरिंदो मंदर' गिरि परि धीरो जी ४ . संप्रत भावरत्नसूरी प्रतपे श्रीहीररत्नसुरि केरो जी पंडीत लबधिरत्न माहामुनीवर वारु शिष्य वडेरा जी ५ तसु अनुचर 'वाचक'पदधारी श्रीसिधिरत्न सुषकारी जी श्रीमेघरत्न गणिवर तसु विनीतजीअमररत्न आचारी जी ६ शिवरत्न तसु शीश सवाया पांमी तास पसाया जी ए में वारु रास बणाया आज अधिक सुष पाया जी ७ वरस सतर से सतसठि (१७६७) आसो चदि छवि(ठी) निं सोमवारि जी मृगशिर नक्षत्र अनें शिव जोगें गाम 'उनाऊ'भा मका(झा)र जी ८ 'भीडभंजन' प्रभू पास प्रसादि लीलावतीनी लीलाजी सुमतिविलाससंजोगे गांई सुणता आपी शिवलीलाजी ९ ए कथा जे भावि भणस्ये एकसना साभलस्य जी दुष तेहना दूर टलस्य मनना मनोरथ फलस्ये जी १० 'धन्यासि' रागें सोहावी एकवीसमी ए ढाल जी उदयरतन कहि आज में पामी सुष संपति सुष सील जी ११ इति लीलावतीसुमतिविलासरास संपूर्णः ॥ संवत् १८५७ना कार्तिक वदि ९ वार मंगल दिने लिष्यो छै श्रीधोराजी' मध्ये ॥ पुज ऋषि श्री५ वेलजी तशिष्य पुज ऋषि श्री५ देवचंदजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018042
Book TitleDescriptive Catalogue of Govt Collections of Manuscripts Part 2 Svetambara Works
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal R Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1967
Total Pages442
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size15 MB
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