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549..] The Svetāmbara Narratives
303: numbered and unnumbered sides so that it forms a design; some of the foll, partly worn out; condition on the whole very good ; complete ; composed in Samvat 1605 in
Gujarāti at Vikanayari. Age.-- Pretty old. Author.- Vacaka Vinayasamudra, pupil of Harsasamudra of the
gaccha. For his additionrl works see Vol. XIX ( sec. 2, pt. X, No. 201 ). Subject.- A story of Rohana, a sage. Begins.- fol. 1* ॥ ए ६ ॥
॥ चउपई॥ सुरपतिबंदित सुव्रतसामि । त(न)मिनइ ते(ने)मि नमउं सिर नामि । पास प्रतापी गुण अमिरांम । वीरचरण जिणंदचरण वंदामि ॥१॥ गणधर गुरु नइ सासणसुरी । दिओ मुज वयणचातुरी।
जिणवरवचन जि करई प्रमाण तेहना करिसु केवि वषाण ॥२॥ etc. Ends.- fol. 60
फलसी इहलोकि हिंसंदी(?) टलसी दुष सयल आपदा रोहण पुस्परयणि जिम कीयओ।तिम करियो सुणियो भावियो ॥३॥ श्री'उवएस' हि गच्छि गुणंद संपइ सिद्धिसूरि गुणचंद। ककसूरि षेवइ गणधार । तासु चरणसेवक सुविचार ॥ ४ ॥
20 हरषसमुद्र तसु सीस मुणिंद । वाचक विनयसमुद्र जनवंद्य। सुतसागरथी। लहि लवलेस रे(र)वी(ची) कथा निज बुद्धिविसेस॥५॥ पडु (१) गयण रितु विधु वत्सरई १६०५ 'वीकानयरिं' बीज वासरई। वार सुरगुरुवर कल्याणमालाविस्तर सुषनिधान ॥ ६ ॥ फागुण मासिहि नय नय आस फलओ सदा धउ घणा उल्हास ।
25 जिणवर चउतीस मइ गए(?ण)धार । संघ सयल धरि मंगल चार ॥७॥
॥ इति श्रीरोहणमुनिचतुष्पदी समाप्ताः ॥ ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याण
मस्तु ॥ ॥ सुभं भवतु ॥ Reference.- Only this Ms. is simply noted in Jaina Gurajara Kavio
(Vol. III, pt. 1, p. 629 ). No extracts are given. Here 30 this work is named as रोहिणेयरास.
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