________________
162
Juina Literature and Philosophy
[445.
10
(1) ज्ञानप्रकाश V. S. 1906
( 2 ) लब्धिप्रकाशचौपई V.S. 1903. Subject.- Narration perraining to Bharata, son of Kaikeyi. Begins.- fol. 1° ॥ श्रीपार्सनाथाय नमः ॥
दोहा॥ सुमरूं जिण चौवीसने । मन वच काय करि सुधः । कर्मसवलदल षय करूं । पावु निर्मल बुध ॥ १॥ विहरमान अरिहंतने । श्रीमंद्रादि ब्रवीस ।
विचरे क्षेत्र ‘विदेह'मै । जास निमाऊं सीस ॥ २ ॥ etc. Ends.- fol. 26
पुज्य श्री श्रीमजी जांण पंडतराज षिमा(?) गुणषाण । तेहना सिष्य अंतेवासी थया । पूज्य श्रीनाथुरामजी थया ९ ॥ तेहना हस्तदिषत अणगार । स्वामी श्रीरायचंद विचार ॥ तेना सिष्यश्री श्रीरतीराम । भव्य जीव समीरे काम १० ॥ तेहना सिष्य अंतेवासी थाय । नंदलालजी' एह गुण गाय देस 'पंजाब' 'जंबूपुर माहि गुरूपरसाद ए ग्रंथ वनाय ११ ॥ ठारां से सत्तत्तर (१८७७) सालः ॥ कातिक सुदि तीज तिथि लाल ॥ पठे गूणे जे नरनार ॥ जे(ते)को सुफल होय अवतार ॥ १२ ॥
कलसः इभ भर्त्त नंदन केकई माता ॥ रास हुं एह गाईयो । 'पंजाब' देस 'जंबू'नगरमै एह ग्रंथ वनाईयो १३॥ जे कोई अष(क्ष)र ढाल भंगै एहमे जो मै कही। तिण काणे मिच्छा म(मि) दुकमुं(९) हुँ जियो मूढने सही १४ ॥ ___ इति भर्तनी चौपई ममृतं ग्रंथाग्रंथ ॥ ५५८ ॥ लिष्यत्त ॥ स्वामीजी श्रीश्रीश्री १०८ ॥ श्रीस्वामीजी श्रीरायचंदजीः तथ(त्)सिक्ष अंतेवासी स्वामीजी श्रीश्रीश्रीरतीरामजी तथ(त्)शिष्य लिषतं नंदलाल 'पंजाब'देस
'हुँसियारपुर नगरे मध्ये संवत् १८७८ वर्षे ॥ ७ N. B.- This work is not at all noted in Jaina Gurjara Kavio.
Jn its Vol. III, pt. I, p. 344 two works noted by me as additional ones are however mentioned.
30
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org