SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 30 Jaina Literature and Philosophy 123 Ends.- fol. 329 पुनरपि चारित्र आदरइ विशुद्ध हीर गुरु हाथि पंच मा(म)हाव्रत उच्चरइ अठाधीस ऋषिनइ साथि ६२ ऋषि मेघजी उदि)धोतांवजय नाम अनोपम दीध ऋषि गनो तस गुणविजय दी, नाम परमिद्ध ६३ नाम थापा अनुक्रमइ कीधी श्रीगुरुराज पाम्यो लाभ पुरइ अतिघणो सार्या बहु तस काज ६४ श्रीहीरविजयसूर्गश्वर गुणवंत तस तणो शीस गिरुओ गुर्णावजयगणि गुरुआणा बह निज सीस ६५ तस विनयी व(वि)गता विबुध संघविजयो पभणंति सरस संबंध श्रोता मुणइ पुगइ बक्ता मन पांति ६६ सम्व संपज मणतां अवणि नासई तस उचट . भणइ गुण इम निभाषरयु तस घरि हुइ गहगट्ट १७ चंद्रकला उदधि निधि ( १६४९) बरस मृगशिर मास शुदि पंचमी उत्तरा रकि पूरण रचउ रास ६८ etc.. ol. 33° राजऋषि दोय प्रातर्नु । आख्यान तस अमिराम । मणतां एह गुणतां मुणतां मावा पामइ अनंतसुख ठाम । अथ ७५२। इति श्रीअमरसेनव(य)रसेनराजऋषिआख्यानक संपूर्ण । लिषितं संवत १६९७ वर्षे मार्ग(ग)शीर्षमासे शुक्लपक्षे दस(श)यां सरगुरुवासरे भी(१) । सुभं भवतु ।। श्रीः । कलस राग धन्यासी (श्री) श्रीवीरथी अनुक्रमह पाटइ 'तपगछ शुद्ध परंपरा। श्रीविजयदान गुरु हार 'जेसंगजी विजयतिलक सूरीश्वरा । तस पटोधर उदयगिरि जिम उदयो अविचल दिनकरूं । अभिनयो गौतम भविक बंदो श्रीविजयाणद सूरीश्वरू। ८२ । संप्रति विचरह गुगप्रधान गुरु छत्रीस गुण अंगइ धरह । साधुपुरंदरमहिमामंदिर अमृतवाणि मुखि उच्चरह। श्रीहीरविजयसूदिसेवक गुणविजयगणि मुनिधरू । तस शीस संथुण्या राजऋषि दो सकलसंघमंगलकरू । ८३ । इति रासनी चूलिका संपूर्णा कल्याणमस्तु । 1 This moam विजयसनमुरि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018041
Book TitleDescriptive Catalogue of Govt Collections of Manuscripts Part 1 Svetambara Works
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal R Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1967
Total Pages480
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy