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________________ 312.] Supplement : The Svetānbara Narratives 425 भाहि सलेम आगलि जय वरीओ श्रीविजयसेनमरी गुणदरीओ जी विरुर 'सवाई जगतगुरु' धगओ मत्ति सुरगुरु अधिकरिओ जी ५ सण. भीविजयदेवमरीश्वर तस पाटी उदयो अभिनर भाण जी । आचारिज श्रीविजयसिंह सूरीसर ज्ञानक्रियागुण जाण जी ६ सु. अनुक्रमे ते आचारिज सरपति प्रतिचोधन पोहता जी भीविजयदेवसूरी निज पट्टे धापड श्रीविजयप्रभमूरि विनीता जी सण. संप्रति ते जयवंता हुंता तम मच्छ शोभाकारी जी भीआणंदविमलसूरिंदीक्षिन कवि धमसिह प्रति सारी जी ८ मु. तस शिष्य श्रीजयविमल विबुधबर कातिविमल कवि सीस ताना जी 10 सदाचारी शुद्धाहारी विरुद कहीजें तेइना जी ९ मु० श्रीविनयविमल पंडित वयसगी शिग्य तेहना लहीहं जी श्रीविजयप्रभमरिनी आणा सीस धरी निरवही जी(१०) सणयो । धीरविमल पाडत तस सेवक समय मानि शुद्ध पाणी जी शक्तिप्रमाण क्रिया अनुसरता सीपवता भाव प्राणी जी १११° 15 'वईमान'तपकारक तेहना लब्धिविमल तस मीसा जी लघु सेवक नयविमल विबुधना बुधमा सबल जगीसा जी १२ मणयो मयण सहाई चित निरमाय उपप करी लीधु जी आचारिजपदें शानविमल इलि नाम धयुं सुप्रसीधुं जी १३ एणयो' निधि युग मुनि शशी १७४१ संबत माने फागुण शुदि पंचमी 20 दिवसें जी 'पत्तन'[न]नयर सणें तम पासे पद पाम्यं शुभ देशे जी मणयो। १४ भीविजयप्रभसूरीने पाटि पप ?) भंवेग बहाया जी ज्ञानावमलसूरी संप्रति दीपई तजि तरणी सवापा जी १५. तिणे ए आणदमांदर नामें गम को सुखहेति जी 23 सागर विजय बेहु भमवाये सणवा ने संकते जी १६ मणयो. 'राधनपुर' सहरें प्रारंभ्यो संपूरण थयो तिहाई जी नभ मनि मुनि विधु १७७० संवत्र मानि अधिक भधिक उपवाजी १७ मणयो. माह शुदि अजूयाली तेरसी पूरफारक योगे जी स्नात्रोवदिने बढयो प्रमाणे एपथी सखीओ सब लोग जी १८ 30 सणयो. 64 1J.L.P. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018041
Book TitleDescriptive Catalogue of Govt Collections of Manuscripts Part 1 Svetambara Works
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal R Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1967
Total Pages480
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size17 MB
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