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Subject. Begins.
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is त्रिपुरास्तोत्र
No. 244
[243.
Jaina Literature and Philosophy
Glorification of the Jaina Deity in Vernacular ( Hindi ) fol. sb अथ त्रितीयस्तुति प्रारंभ्यते ||
जय परमात्मन् ! || जय शुद्धात्मन् ! || जय चैतन्यमूर्त्ति ॥ ॥ जय आनंदघन ! | भो प्रभो ! इस संसार मैं अनादि तैं लगाय मैं अनंत पर्याय धरेति न पर्यायनि विषै मो ह अनेक अहितकारी संयोग मिले । कोउ सहाई न मिल्यो हां दानी तुम मोहू परम उपगारी मिले। सो प्रथम तौ तुम्हारे शरीरकी शांत मुद्रा देतें ही मेरे शांतता भई । etc.
Ends. — fol, 7a
अर तिसकी प्रगटता भी अब सीघ्र ही होसी । ऐसी प्रतीत आबने करि मेरे तो अब ही सर्व्वज्ञ वीतराग स्वरूप पायेंका सा आनंद भया । मैं तौ कृतकृत्य होनि बस्या || अब जो कर्तव्य है सो तुम्हारा है । मैं तो तुमकुं वस्तुस्वरूप का अनुभवी अर परम उपकारी जांनि वारुंवार नमस्कार करूं हूं || नमः सिद्धं ॥ इहां नमस्कार करनां ॥ ३ ॥
इति त्रितीयस्तुति संपूर्ण ॥ ३ ॥ छ ॥
Extent. - fol. 37b to fol. 388.
Description. Complete; 24 verses in all.
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Author. Laghu-Panditaraja.
Subject.- Praise of Tripura, a goddess..
Begins fol. 37b
Tripurāstotra • 575 (43). 1895-98.
Namaskaramantra ( Vol. XVII, pt. 3, No. 737 ).
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आधारे ( S) विरुचिरं सोमप्रभं ता बं
बीजं मन्मथ इंद्रगोपकनिभं हृदपंकजे संस्थितं । रंधे vera fari चंद्रप्रभाभासुरं
services areषे । ते यांति सौष्यं परं ॥ १ ॥ extra शराशनस्य दधती मध्ये ललाटं प्रभ
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शौक्की कांतिमनुष्णगोरिव शिरस्यातवती सन्तः । एषा ( s) सौ त्रिपुरा हृदि युतिरिवोष्णांशो सदा ह ( ? ) स्थितां छियादवः सहसा पदैस्त्रिभिरमां ज्योतिर्मयी वाङ्मयी ॥ २ ॥
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