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________________ Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur (Jodhpur Collection) 117 किसी पुरुष को तलास कर ले। जिसकी कमर पर घड़ा होने का घट्टा पड़ रहा है ऐसी स्त्रो को मैं नहीं भजता ॥३०॥ नायका का उत्तर-हे कामबाण से पीड़ित पुरुष, तूं सच्च कहता है । पर मैं कुछ अभिलाष से नहीं देखती हूं। एक नौकर मेरा तेरे से मंह का भाग गया है सो मैं तजबीजती हूं कि यह वही है कि और कोई है ॥३१॥ इति श्री दुर्गादत्तपण्डितकृतशृगारतिलकभाषाटीका समाप्ता ॥ COLOPHON 6465. शृङ्गाररसमण्डनम ॐ नमः श्रीकृष्णाय। OPENING COLOPHON COLOPHON मुदा चंद्रावल्या कुसुमशयनीयादिरचितुमहो संप्रोक्ता: स्वप्रणयिसहचर्यः प्रमुदिताः । निकुंजेष्वन्योन्यं क्षतविविधतल्पेषु म (प) रमा (?) कथां स्वस्वामिन्याः सपदि कथयन्ति प्रियतमा ।। अस्माकं तु जगत्त्रयेऽपि सुभगे नापेक्षितं किंचि. दप्येतावत्परमंबुजाक्षि सततं संप्रार्थनीयं मुहः। इत्थं शश्वदनिंद्य पंकजद्दशा नंदात्मजः सुन्दरः सर्वस्वापरणधीरया स रमतामस्मत्कृते सद्मनि ।।२०६।। राधा-चन्द्रावली-गोपी-दासी-कथितमद्भुतं । सम्पूर्णमभवत्कंजे शृंगाररसमंडनम् ।। २१०।। इति श्रीमद्गोपीजनवल्लभकतानश्रीविठ्ठलेश्वरविरचितं शृगाररसमंडनं सम्पूर्णम् । 6466. शृंगारलहरो श्रीगणेशाय नमः। पयोधेरुत्पन्ना कमलनिलया श्रीगुणनिधे. स्त्वमुत्पन्नासीना सरसमनसि प्रेमरसिके । रमासीमानं ते तनुसुभगतायाः कथमपि प्रसन्ना सा न स्यात् त्वमिव जगति स्वं विलससि ॥१॥ कवीनामन्येषां मदहरणदक्षाक्षणकरी रसानन्दास्वादव्यसनरसिकानामविरतम् । कृता रामेणेयं कविजनवरेणातिमहिमा रसैः पूर्णा नित्यं भुवि लसतु शृंगारलहरी ॥२१॥ इति श्रीकविचक्रवर्य रामकविकृता शृंगारलहरी समाप्ता। संवत् १९४२ की भाद्रपद शुक्ला ६ गुरुवासरे लिखितं काशीनाथशर्मणा जयनगरे शुभं भवतु। OPENING CLOSING COLOPHON For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.018015
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 3 B
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages818
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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