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________________ 66 Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts, Pt. III-B (Appendix) तैसे तेरी वाणी कर तेरी ही स्तुति ए भई है । अर्थात् मातृकास्वरूपिणी तू है । ताही को प्रपंच ए स्तुति है। स्तुति का कर्ता मैं शंकराचार्य नाहीं हूँ। परा, पश्यति मध्यमा, वैखरी, च्यारों ही वाणी रूपिणो मातृका रूपसौं स्तुती की कर्ता तूं है। अरु अतर्यामी रूप से प्रेरक ही तू ही है । या त तेरी स्तुती तें ही नै करी है। मैं तो का नाहीं हूँ, ते हैं । अरु तेरी ये वाणी है तो निगम ही है । यातै पूर्व श्लोक में प्रार्थना करी सो साभिप्राय भई । इत्यादि व्यंग्यार्थः ।।१०३॥ छप्पय नहि असत्य, नहि सत्य, नही पुनि सत्यासत्य हि, नहि अनित्य, नहि नित्य, नही पुनि नित्यानित्य हि । नहि अभिन्न, नहिं भिन्न, नही पुनि भिन्नाभिन्न हि, अंसी कोउक शक्ति वस्तु की अनिरवचन्न हि । माया उदार काया त्रिगुण, रमा उमा वानी कला, जगदम्ब भक्त-पालन-परा चिदानद-घन-निरमला ॥१॥ श्री शंकर प्राचार्ज जू, श्रीशंकर अवतार । माया ब्रह्म अभेद करि, वरनी श्रुति निरधार ॥२॥ तंत्र के अनुसार पुनि, श्रुति हू के अनुक्ल । स्तुति सुंदरलहरी करी, श्री शंकर तपमूल ॥३॥ शंकरवानी के प्ररथ, वेद-वाक्य ज्यों गूढ़। जिनकौं कसें जानहीं, प्राकृत मानव मूढ़ ॥४॥ तथापि मत लख बुधन को, संप्रदाय अविरूद्ध । भाषा टीका यह करी, शंभुदत्त मतिशुद्ध ।।५।। इति श्री ज्योतिविच्छिवकृष्णसुतशभुदत्तकृत - सौंदर्यलहरी भाषा संक्षेप टीका COLOPHON संपूर्ण । संवत रस नग नाग शशि, ऋतु शरद्द रसमास । सित पख तिथ आठौं सहित, सोमवार शुभरास ॥१॥ Post-colophonic वाचनार्थ पोसाख वाला बालकृष्ण ॥ श्री जोधपुर मध्ये ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याण मस्तु ।। OPENING 5500. स्तवमाला श्री राधाकृष्णाभ्यां नमः। श्रीमदीश्वररूपेण रसामृतकृता कृता । स्तवमालाऽनुजीवेन जीवेन समगृह्यत ।।१॥ पूर्व चैतन्यदेवस्य कृष्णदेवस्य तत्परं । श्रीराधायास्ततः कृष्ण राधयोलिख्यते स्तवः ।।२॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.018015
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 3 B
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages818
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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