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________________ 30 Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts, Pt. III-B (Appendici OPENING 4698 विष्णसहस्रनाम सटीकम् ॥ श्रीकृष्णाय नमः॥ सच्चिदानन्दरूपाय कृष्णायाक्लिष्कर्मणे । नमो वेदान्तवेद्याय गुरवे बुद्धिसाक्षिणे ॥१॥ तथा दूहो सत चित पानंदरूप जो, क्लेशहरन जसु कर्म । नमु ताहि वेदांत कछु, जाको भाषत मर्म ॥२॥ ॐ यस्य स्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात् । विमुच्यते नमस्तस्मै विष्णवे प्रभविष्णवे ।। तथा कुंडल्यो CLOSING दोहा जाके नाम उचारते, जन्म-मरन के फंद छूटत नर के छिनकमैं होत सही निरबंध । होत सही निरबध, अंध इत संसै प्रान, बेद पुरांन इतहास साखि शिव भाषि वखाने । व्यापक सब विधि करन चरन बंदत मैं ताके, प्रज शिवादि अरदासि पासि कर बांब जाकै ॥शा सहस्रनामसम्बन्धा व्याख्या सर्वसुखावहा । श्रुतिस्मृतिन्यायमूला रचिता (हरि)पादयोः ॥४६॥ सहस्रनाम भाषा यह, सबके ऐहें कामि । रत्नदास पाग्या करी, करी दास हरिरामि ।।४।। कहूं वर्ण को अर्थ इत, कहुं प्राशय अर्थ । सब जन समझन कारने, रचियो भाषा ग्रंथ ॥४८॥ अजे सिवादिके नाम जे, ते हरि हो के नाम । निजविभूति करि हरि कहै, कहे दास हरिराम ॥४६॥ संवत् रस ज्वर वसु शशी, (१८३६) प्रथम नभा सित पक्ष । तिथि द्वितिया गुरुवार तब, भाषा भई सुलक्ष ॥४७॥ सुमन परगनै सुभग इक. ग्राम धनोप सुनाम । COLOPHON & Post-coloponic देवयोग को दास हुँ, संत मोर सिरमोर ।। संत शरन विन जग अररिण, नहिं प्रोर को ठोर ॥४॥ इति श्रीहरिरामदासनिरंजनीकृता सहस्रनामभाष्यानुसारभाषा संपूर्णः । मंगलं भगवान् विष्णुर्मगलं गरुडध्वजः। मंगलं पुंडरीकाक्षो मंगलायतनो हरिः ॥१॥ कल्याणमस्तु॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018015
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 3 B
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages818
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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