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Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur (Jodhpur Collection)
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श्रीजाप्ययालयवंशमौक्तिकमरिणः श्रीकर्णभूभृत्सखो,
धीमान् बन्धुक इत्यसीमममहिमाऽभूद्भूमिदेवाग्रणीः । सर्वज्ञस्तनयस्ततोऽस्य स महादेवाभिधोऽभूद् बुधो,
यश्चक्रे स्फुटशब्दसिद्धिममलां कालापकोद्बोधनीम् ॥ १ ॥ सूनुस्तस्यामशर्मा गरणकपरिवृढः पर्वशास्त्रान्तद्रष्टा
ख्यातस्तस्यानुजस्त्वाजड इति विबुधो भीमभूपस्य मित्रम् । विद्वद्वृन्दैकवन्द्यस्तदनुज उदयबुद्धिनिद्धतमाह
ख्यातः श्रीलूणिगाख्यो गरुडपतिपदि द्वन्द्वपद्म द्विरेफः ॥ २॥ शरवसुशशिसोमैः ११६५ सम्मिते शाककाले
नभसि तिथि चतुर्थ्यामिन्दुपुत्रस्यवारे ।
निजमतिपरिणामा तत्तनूजेन तेन,
विवृतिरिति किल श्रीश्रीपतिप्रोक्तशास्त्रे || ३ ||
इति श्रीपण्डितश्रीमहादेवविरचितं रत्नमालाविवरणं समाप्तम् ।
संवत् १८६८ । माघ शुक्लपूरिंगमासि भौमवासरः लिखितं भगीरथब्राह्मण सीतारामब्राह्मणार्थे श्रीगंगा विश्वेसर साह |
5122. ज्योतिषरत्नमाला बालावबोधसहिता
श्रीसद्गुरुभ्यो नमः | श्रीगणेशाय नमः ।
श्लोक : - प्रभवविरतिमध्यज्ञानवंध्यानितान्तं,
विदितपरमतत्त्वं यत्र ते योगिनोऽपि । तमहमिह निमित्तं विश्वजन्माद्यनाथा
ममभिवन्दे [] भग्रह (हं) कालमीशम् ||१||
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श्ररथ - रत्नमाला को अर्थ शगलाई सु शमभावरण रे वास्थे वार्ता लिखत-तीय नृ काल नु नमस्कार छे जीय काल री उत्पति विचिइ नही छः हडो कोई जोगीश्वरे नहीं जाणो जिके जोगीश्वरे आत्मा नो तत्त्व जाण छे परण काल न जाणें इरण संसार रो निमित्तकारण नही संसार री उत्पति स्थिति नही प्रल रो निमत्त कारण छ अन सगलाइ रो कारण छै काइ कस्येकाल छे परण प्रत्तथ नही पण नक्षत्र गृह राशि करे नइ अनुमान कीजेइ छे सो काल छे सगलाइ रो स्वामी है ।
भ्रातुरद्यतनेति । अथं — श्रीपति आचार्य शघलाइ भला मांणसा ने केहे छे, भाइ मित्र आज रा सास्त्र देखे नयल मति करो शास्त्र छे सो अगम छे, मूलगा शास्त्र मांहिलो छे ऋषिश्वरां कहियो छै तोने प्राधिको नही कीदो छे जको कयो छे प्रागला ऋषीश्वरां की आज्ञा प्रमाण कीदी छें ।
इति श्रीपतिभवि[च] तायां ज्योतिषरत्नमालायां उगरणीस प्रकरण संपूर्णम् ।
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