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Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts Pt. II-B (Appendix
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शक्तियुक्त शिव होत शक्त सामर्थ प्रमानै । शक्तिहीन शव देव तेज-प्राक्रम गतिहीनं ।
इहैं जानि आराध ब्रह्म हरिहरलयलीनं । नरदेह पाय ध्यावत तुमहि, जरा-मरण-संकटहरण ।
प्रानन्द-ब्रह्म पावत मुकति, धरत ध्यान अंबाचरण ॥१॥ कलि कविकै शिरताज भये शंकर प्राचारज ।
तिन इह वर्नन कीयो सुकृतिजन-उधरन-कारज । सहस करत शतश्लोक लहरि सौन्दर्य कहावै ।
तिनकौं सुमरन करत संत इच्छा फल पावै । मन-वचन-काय-पातक हरत, अनभव कवि अद्भुत उकति ।
धन पुत्र पौत्र आनन्द अति, भक्ति युक्ति निश्चल मुकति ।।१०१॥ कौलवकुल दाधीचज्ञाति द्विजगलहुडणमं।
सब कवीयनको दास विप्र कवि मोडीयराम । तिन इह भाषा रची लहरी सौन्दर्य सुहाई ।
लक्ष्मीराम गुरुकृपा यथामति करिक गाई ।। अवगुनहरनी अंबिका, जगदंबा असरनसरन ।
ररटि रसन राजराजेश्वरी, चित्तवृत्त चंडीचरन ।।१०२।। दुहा-कथितं मोडीराम कवि, लिखतं निरभेराम ।
कवि दधीच वंदशपुर लिखक, इच्छापूरणकाम ।।२०३।। शत अठार चोबीसम, सावन सुंदर मास । तीज भोमवासर सुभग, उत्तम ग्रंथ प्रकास ॥२०४।। इति श्रीसुन्दर्यलहरी संपूर्ण। समाप्ता । श्रीरस्तु । 3670. स्तवमाला (कृष्णस्तोत्रम्)
श्रीकृष्णनाम्ने नमः । निखिलश्रुतिमौलिरत्नमालाद्युतिनीराजनापंकजान्तः । अपि मुक्तकुलै रूपस्य मानं परितस्त्वं हरिनाम श्रयामि ।।१।।
नारदवीणोज्जीवनसुधोम्मिनिर्यातमाधुरीपूरः।
त्वं कृष्णनाम कामं स्फुर मे रसेन रसेन सदा ।।८।। इति श्रीकृष्णनाम स्तोत्र इति स्तवमाला समाप्ता।
3672. स्वप्नदर्शनस्तोत्रम्
श्रीविठ्ठलेशाय नमः । कुसुमशरशरप्रांता हि शरपुंखमिवोबूच्छूनाच्छ खरकरकमलनखरं बिभ्रतं मकरकुण्डलमण्डितगण्डमण्डलप्रभोद्योतितभुवनत्रयम् ।
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