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Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts Pt. II-B ( Appendix)
3038. रामस्तवराजस्तोत्रं सटीकम्
श्रीजानकीनाथाय नमः |
अथ राम अस्तवराज की टीका लिख्यते - दोहा
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श्रीगुर प्रथम प्ररणाम करि, मंगल मोद निधान । रामरूप रस सिंधु मह, पीन मीन अनुमान ॥ १॥ नगर दिलीप सुहावनो, परिपूरण सुखधाम | नृपति परीक्षत राज तह, गुण मंदिर सह वांग ||२||
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तिनके तनय उदार गुरण, कीरति विदिसिन मांहि । विनय सर्व जय सर्वं मभि, नृप बहादुरी जाहि ||३|| महारानी प्रति विमल गुरण, सील रूप जग जांन । श्रीरघुवर पदपदुमजुग, ललित भूगि अनुमान ॥४॥ तिन कृत आश्वासन सुभग, वरनौ मति अभिराम । रामचन्द्र अस्तव तिलक - भाषा ललित ललांम ||५|| संवत् दस नव एक सुभ, जानि समय अनुकूल । कात्तिक मास सुपक्ष सित, द्व ेज सकल सुखमूल ॥ ६ ॥ राम सु कृपा प्रसाद कुल, उदधि चन्द्र अवतंस | श्रीसीतापति जुग सरन, सुन्दर नाम प्रसंस ||७|| यह कृत प्रदभुत तिलक सुभ, जथा जोग मति पाय । रतनमंजरी नाम गुनि, भाषा वरनि बनाय ॥८॥ रामं रत्नकिरीट कुण्डलयुतं केयूरहारान्वितं
सीतालंकृतवामभागममलं सिंहासनस्थं विभुम् ।
सुग्रीवादिहरीश्वरैः सुरगणैः संसेव्यमानंः सदा,
विश्वामित्रपराशरादिमुनिभिः संस्तूयमानं प्रभुम् ॥६७॥
अर्थ – 'राम' राम जो है श्रीरघुनंदन रमणीक विग्रह तिनको हम सेवन करें। कैसे श्रीरामचन्द्र हैं ? 'रत्न किरीटकुण्डलयुतं' स्ववर्ण को किरीट अरु कुंडल रत
नकरिकै जटित सो माथे पे सोभित है जिनके, कुंडल कानन के विषे सोभित हैं जिनके । × × × × × × × × × × × × × × × 'विश्वामित्रपराशरादिमुनिभिः संस्तूयमानं' विश्वामित्र परासर जाबालि अत्रि गर्ग गोतम शांडिल इत्यादिक मुनि तिरिकै अस्तूयमान हाथ जो ........
3148. गोपीनाथाष्टकम्
श्रीगोपीनाथजी सहाय |
श्रास्ये हास्यतमाधिकमस्मि वंसी, तस्यां नादपीयूषसिन्धुः । तद्वीचीभिर्भर्जयन् भाति गोपी गोपीनाथ [ : ] पीनवक्षा गतिर्नः ॥ १ ॥
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