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________________ CLOSING: & [ ६६ ] एषाऽसौ त्रिपुरा हृदि द्युतिरिवोष्णांशोः सदाहस्थिता, छिन्द्यान्नः सहसापदैस्त्रिभिरघं ज्योतिर्मयी वाङ्मयी ॥ १।। दूहो- जाकी सगति प्रभावतै, भयो विश्व सुविकास । सोई पदारथ चित्त धरो, ध्यान लीन ब तास ॥१॥ जो त्रिपुरा भगवती ऐन्द्रस्येव शरासनस्य कहत इन्द्र है स्वामि जाको ऐसो जा शरासन कहतै धनुष इतनै वर्षा ऋतु को धनुष ताकी जो प्रभा कहतें ज्योति ताकौं मध्ये मध्ये ललाटं दधती क० ललाटमध्य विष धारती है । इतनै इन्द्र धनुष की सी पंचवर्णी ज्योत मेरे दोनौं भौंहा वीचि धार रही है। ए तात्पर्याय-पद मै ऐंकार बीज कह्यौ । सावद्यं निरवद्यमस्तु यदि वा किं वाऽनया चिन्तया , COLOPHON: नूनं स्तोत्रमिदं पठिष्यति जनो यस्याऽस्ति भक्तिस्त्वयि । संचित्यापि लघुत्वमात्मनि दृढं संजायमानं हठात् , ___त्वद्भक्त्या मुखरीकृतेन रचितं यस्मान्मयापि ध्रुवम् ।। २१ ॥ इति श्रीलध्वाचार्यविरचितं श्रीत्रिपुरास्तोत्रं सम्पूर्णम् । अब या स्तोत्र की महिमा कहे है । कोऊ या स्तोत्र को सावध क. सदोष कहै है, कोऊ या स्तोत्र कौं निरवद्य क. निर्दोष कहै है । Xxxxxx तेरे प्रसाद के निश्चय नै रचितं क. ए स्तोत्र रच्यो ॥ २१ ॥ दूहो- सत्रहसै अठानुप्रै, माघ कृष्ण पख बीज । सोमवार ए वचनिका, पूरण लिखी सबीज ॥ १॥ गछ खरतर कुल खेम के, दयासिंघ के सीस । रूपचंद कीन्हे सुगम स्तोत्र काव्य इक ईश ॥ २ ॥ ग्रंथाग्रंथ ४७५. लेखकाः वदन्ति तदनुसारेण मयापि कृतं गणनम् । 1489. त्रिपुरास्तोत्रम् OPENING: श्रीत्रिपुरसौन्दर्थे नमः । & CLOSING : Same as at no. 1437 COLOPHON : इति श्रीत्रिपुराछन्दसम्पूर्णम् । Post-Colophonic: लि । गुंसाई निश्चलपुरिः। 1490. त्रैलोक्यमङ्गल-कवचम् OPENING: श्रीगणेशाय नमः । श्रीकृष्णाय नमः । पुलस्त्य उवाच भगवन् सर्वधर्मज्ञ कवचं यत्प्रकाशितम् । त्रैलोक्मङ्गलं नाम कृपया कथय प्रभो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018011
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages640
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size8 MB
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