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________________ Ct.-CLOSING: COLOPHON : Post Colophonic : OPENING : CLOSING : COLOPHON: Post-Colophonic : OPENING : Jain Education International [ ३२ ] परस्परे उपजावे । वली केहवो छे ते ब्रह्म । ये काले वस्त्र नी परे जूनूं न थाय । अग्नी वडे काष्ठ नी परे बले नही । ये उदक वडे कोहे [भीजाय ] नही । येह ब्रह्म समस्त विश्व नू बीज तेहने नमूं छू । हे नरेन्द्र महाबुद्धि जोइतां इम मांनुं छू जहां ब्रह्मांडकोटि नु नाथ श्रीकृष्णजी येहनी सेनानि विषै छे। अने अर्जुन सरखुं योद्धा धनुर्द्धारी बलवत छे तिहां मूर्ति लक्ष्मी ने जयश्री तेहने छे । वली समस्त कल्याण समस्त सुख तिहां छे । राजन् जोतां मुझने एहवूं भासे छे । जे ताहरा पुत्र ने जीवतव्य नी आशा तथा जय पांमव नी आशा वेगली देखूं छू। इति श्रीभगवद्गीतासूपनित्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे सर्वसारसंग्रहो नाम अष्टादशोध्यायः समाप्तः । संवत् १८१५ ना वर्षे चैत्रमासे कृष्णपक्ष सनीवारे नोंमी दिने । सम्पूर्णम् । 600. दत्तगीता ( सार्थ ) श्रीगणेशाय नमः | आत्मानं श्रमृतं हित्वा भिन्नमोक्षार्थमव्ययम् । कुतो हि कुत्सितः काको वर्तते नरकं प्रति ॥ १ ॥ टीका - सर्व व्यापक होए तेहनें आत्मा कहियें । ज्येह को वस्तु थी भीन्न नथी, ज्येह नो नास नथी एहवो मोक्ष रूप ज्ये श्रात्मा तेनें त्यजी ने कुत्सित केहतां निदित कागडा सरखो जे मनुष्य ते नरक प्रतें दोड़े छे ॥ १ ॥ समरसमग्नो भावितपूतः विन्दति विन्दति नहि नहि मन्त्रो नहि नहि तन्त्रो लक्षणछन्दः । प्रलपितमेतत् परमवधूतः ॥ २० ॥ टीका -- ज्ये आत्मानें कोए पुरुष जांरणतो नथी । घरणाए मंत्र ना आराधन ना अभ्यास करें। तोहें मंत्रे न यरणाय । ये मोक्ष ने नांना प्रकार ना । तन्त्र ज्ये शास्त्र ते जांगता न थी । लक्षणें करी आत्मां जांण्यो न जाय । छंद ये वेद तेंय आत्मा जांण्यो नही । एवं श्रवधूत जे सर्व परित्याग करीनें रह्या तेणें एवं कह्य ू छें ● अवधूत केवा छें ? ए सर्वत्र समान आत्मा ने देखे छे । भावनाये | आत्मा ध्यान तेणें करीनें जाणे ते साक्षात् केवल्य मोक्ष पांम्यो जांरणीयें ॥ २० ॥ ए सातमा प्रकरण नो अर्थ संपूर्ण । इति दत्तगीता समाप्तं । लेखक गुसांई अनंदगीरजी ईदं पुस्तकं । 605. पितृगीता श्रीगणेशाय नमः । भजनं निधिरूपं ते पितृभक्तिविधेः फलम् । ऋषयः परिपप्रछुः मासं (व्यासं) धमार्थकोविदम् ॥ १ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018011
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1963
Total Pages640
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size8 MB
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