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मुनिराज श्रीपुण्यविजयानां हस्तप्रतिसंग्रहे
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आदि : - श्रेयः पल्लवयन्तु वः प्रतिदी (दि ) शं संसारदावानलं द्राग्निर्वापणकेलिलम्पटतया ते पुष्करावर्त्तकाः । वाचा वीरजिनेश्वरस्य निचयाः सद्धर्मकल्पद्रुमो
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अन्तः
अन्त:
ल्लासप्रीणितमुक्तियौवनभराः प्रौढस्पृहाः प्राणिनाम् ॥ १ ॥ ता वांदिअ देवसूरिपाय प्रणमवि अनइ पुण्यदेवसूरि ता छंद आगम-तक सुन्दर सुगुरु रामचंदसूरि । ता जयउ मंगलसूरि बोलइ महावीराभिसेय
आदि:- मुक्तालंकारविकारसारसौम्यत्वकान्तिकमनीयम् । सहज निजरूपनिर्जितजगत्त्रयं पातु जिनबिम्बम् ॥१॥ रिसह मज्जणु रिसह मज्जणु कर असुरराय उप्पाडिअ जय जय करिय जणणिपासि मिल्हिवि जत्ता नंदीसरि अट्ठदिवस करीय देव नीय ठाणी पत्ता । इणी परि सयल जिणेसरह न्हवण करईं बहुभत्ति
मुणी रयणायर - पावहर जिम तुम्ह दिउ वरमुत्ति ॥ ११॥ इति श्रीआदिनाथजन्माभिषेकः समाप्तः ॥
ता कणय-कलसहिं न्हवउ भविअह पूजउ एह जि देवा ॥ १५ ॥ इति श्रीमहावीरकलसः सम्पूर्णः । [ 5674]
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आदि:- जम्ममज्जणि जम्ममज्जणि जिणह वीरस्स पादद्वयसुरगणिण मेरुसिहरि इंदेण चिंतिय किम सहिइस्य तुच्छ तणु । जलपवाह सुरखित्ति इत्तिअ पुण अमुणिय जिण बलकलिय
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इय चिंतिय सुरिंदलीलहि चालिय वीरजिण वामगपग्ग गिरंद || १ || इति श्रीमहावीरदेवजन्माभिषेकः समाप्तः ॥
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आदि:- जयउ सयल सुरासुर नमिय पाय, जयउ कंचण कोमलविमलकाय । जयउ सुन्दर सोहगसिरि सोहाय, जयउ संतिजिणेसर भुवणराय ॥१॥
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