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________________ प्रशस्त्यादिसंग्रहः । रयणसिंहसूरीसर रयण, दीठइ त्रिपतां थाइ नयण । जगत वदीत जीतउ मयण, साचउ कीधउ जिननुं वयणु (ण) || २८ ॥ सिरिमुनिरत्न नमूं उवज्झाय, जाइ पाप नमतां जेह पाय । सरल चित्त नइ रूपि अपार, जाणइ सयल शास्त्र सुविचार || २९॥ जयवंता पण उवज्झाय, जयमूरति तपि निरमल काय । साधइ पवननइ जाणइ तत्त्व, संयम विषइ जीहं निरमल चित्त ||३०|| चंदनबालादिक महासती सीलसुगंधिइ जस वासती । सूध चारित्रु प्रतिपालती, सोल सतीनइ छलि जागती ॥३१॥ श्रीमेरुचूला महत्तर सपाट, धर्मतणी अजूयाली वाट । रतनचूला अच्छ महत्तर, वांदउं जयवंता सउ वरस ||३२|| श्रीरतनागरगच्छ विदवांस, जे जे रत्नाधिक पडयां हंस । महासत महासती सविहुं नाम, करजोडीनइ कर प्रणामु (म ) ||३३|| परि सहु गुरु के नाम, लेई नइ जे करइ प्रणामु (म) । मनसा वाचा कायविशुद्धि, तीहं तणइ घरि अविचल रिद्धि ||३४|| ॥ इति गुरा (र्वा) वली समाप्ता ॥ [ 5664] अन्तः - ता सिरिमालह मंडणू पावविहंडणु थप्पिउ जिणेसरसूरि । ता भविअहु वन्दहु जिम्ब चिर, नन्दहु दुरिउ पणासह दूरि ||४|| शांतिनाथ बोली || ( नवमपत्रे लिखितमिदम् - ) मोल्हणयोग्यः ॥ ( त्रयोदशपत्रे लिखितेयं पुष्पिका - ) संवत् १३५० आषाढ सुदि ५ पत्राणि लिखितानि बोलीसूक्तानि । अष्टादशपत्रे लिखितेयं पुष्पिका - ) शान्तिनाथ बोली । संवत् १३५० चैत्र सुदि १ रवौ रेवती नक्षत्रे श्रीजिनेश्वरसूरिशिष्येण विनयसमुद्रे (ण) मुनि [ना] देवराजपुरस्थितेन महीधरपुत्रमोहणनिमित्तं कलस - बोली पत्राणि लिखित मि ( तानी ) ति । सुन्न - सर - राम-रूवे (१३५०) चित्ते सियपक्खि पडियरेवइए । कलसा-बोलीपत्तो विनयसमुद्देण लिहियाणि || देवराजपुरे नयरे रविवारे पत्तयाणि लिहियाणि । सिद्धिमहाधरतणयमोल्हण नामा (म) निमित्तेण || [ ३६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018007
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages598
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size9 MB
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