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________________ ३६० ] Jain Education International मुनिराज श्रीपुण्यविजयानां हस्तप्रतिसंग्रहे सयल कुटंबउं आगलि करी, जिणि आराधी संजमसिरी । तपागच्छनउ तरूअरुकंदु, वांदू विजयचंद्रसूरिंद ॥१३॥ क्षेमकीरतिसूरि प्रज्ञावंत, कल्पवृत्ति कीधी सिद्धंत । वयर सेणिसूरीसर चंगी, पदमचंद्रसूरि वांदुं रंगि || १४ || हेमकलससूर गरूया जाणि, अमृत समाणी जेहनी वाणि राय राणा प्रतिबोध्या घणा, पार न पामुं गुण तीह तणा ||१५|| यशोभद्रसूरीसर एकंत, पापु पणासह पाय प्रणमंत । वात एक हिव साची कहउं, रतनागर गुण पार न लहउं ॥ १६ ॥ सेवक जन मनवंछित फलई, जिनशासनि जस जस झलह [ल]इ । तपागच्छमांहि प्रगटिउं नामु, श्रीरतनागरसूरि प्रणाम ||१७|| रयणसूरि गणहररयण, हेलां हारि मनाविउ मयण । श्री मुनिशेखरसूरि प्रधान, संयम - शम - दम योगनिधान || १८ || श्रीधर्मदेवसूरि क्रियाकठोर, आठ करम जीत्यां अतिथोर । श्री बाण चंद्रसूरि निरमल नाणु, जिणसासणि गयणांगण भाणु ॥१९॥ क्षमावंत निरमल निरमाय, तपतेजिइ जस निरमल काय । संयमसिरि मुखमंडण भयउ, अभयसिंहसूरीसर जयउ ॥२०॥ पूनम केरु निरमल चंद, तिसा बखाणउं गुरु हेमचंद | STET आगमथि विचारी, आचारज पदे थाप्यां च्यारि ॥ २१ ॥ श्रीश्रीमालवंश शिणगारु, कामलदेवी तणउ मल्हारु । धारागरकुल नहीयलि चंद, श्रीश्रीजयतिलकसूरिंद ॥२२॥ जयवंता जगि कर विहार, प्रगटई बहु सित विचार | श्री जयतिलकसूरि मनि धरइ, रिद्धि वृद्धि तीहं सयंवर वरइ ॥२३॥ साची सिरिमाणिकसूरिबुद्धि, आगमग्रंथनी जाणइ शुद्धि । कलियुग जाउं गोयमसामि, लबधि वसई जिहां जहिंनइ नामि ॥२४॥ पूरव सूरि तणउ आचार, प्रगटई जयवंता सविचार (रु) । पाति ||२५|| श्रीधर्मशेखरसूरि नमंति, ते नर निश्चइ सुख तपागच्छ गुरूया गुरुराय, तपतेजिइ जस निरमल काय । जाणई लक्षण छंद पुराण, अमीय समाणउं करई वखाणुं ॥ २६ ॥ मोहमयणु बेउ द्रवड्यां दूरि, प्रभु वांदउं रत्नसागरसूरि । चारित्रलक्ष्मी उरखरि हारु, निर्मल गुणरयणह भंडारु ||२७|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018007
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages598
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size9 MB
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