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१. प्रशस्त्यादिसंग्रहः ।
[१६७ संवत् १६८८ वर्षे आसोमासे सुकुल(शुक्ल)पक्षे पंचमीतिथे(थौ) रविवारे । सेरपुरे लिषितं ऋषिश्री५लक्ष्मीदास-तशिक्षेन षीजजी लिपीकृता
इयं पुत्रका(पुस्तिका) स्वयं वाचनार्थम् ।। [3041] मू० आदिः-एँ नमः ॥ ॐ नमस्तत्त्वदर्शिने परमेष्ठिने वीतरागाय ।
वीरं जयसेहरपयपइठ्ठियं पणमिऊण सुगुरुं च ।
मंदोत्ति ससरणछा खित्तवियाराण वोच्छामि ॥१॥ मू० अन्तः- सूरीहिं जं रयणसेहरनामएहिं अपच्छमेव रइयं नरखित्तविक्खं ।
संसोहियं पयरणं सुयणेहिं लोए पावेउ तं कुसलरंगमयं पसिद्धम् ॥२६२।। इय खित्तसमासपक[र]णस्स छछो अहिगारो सम्मत्तो ॥१॥
संवत् १७०६ वर्षे वदिदशम्यां गुरुवासरे कडीनगरे ऋषिश्री५ हरराज-तत्शिष्य ऋषिश्री ५ वीराजी-तत्शिष्येण विष्णुदासेन व्यालेखि स्वात्म
पठनार्थम् । वा० आदिः-एँ नमः ॥ ॐ नमस्तत्त्वदर्शिने वीतरागाय श्रीं नमः ॥
निश्शेषकर्मदलने श्रीदेवार्य प्रणम्य सद्भक्त्या । स्वपरोपकृतये कुवै क्षेत्रसमासस्य सुखबोधम् ॥१॥
ग्रंथनी आदि मंगलाचरणनी गाथा कहइ छई ॥ वीर जय० ग्रंथनउ
करणहार श्रीरत्नशेखराचार्य इम कहइ छइ । [ 3042 ] सूचनम्- प्रशस्तिस्तावत् No 3040 वद् ज्ञेया ।। [30441 सूचनम- प्रशस्तिः No.3040 वद् ज्ञेया । विशेषस्तावदयमेव
श्रीपूज्यके शिष्यने पुस्तक लिषी प्रधान । पढत सुणत गुण उपजै अम्बालानगर सुथान ॥ जा(या)हिशम्०॥
संवत् अठारासय छन्वी भाद्रवमासे शुक्ले पक्षे तिथौ पडवां शुक्रवारे लिषाप्तं श्रीपूज्य आचार्य जयगोपालस्वामिजी लिषाप्तं पगधर मूलाऋष आत्मार्थे पठनार्थम् ॥
[3045] आदि:-...इ गच्छि भट्टारकश्रीजयतिलकसूरिनइ पाटि गच्छनायकभट्टारक श्रीरत्न.
सिंहसूरिनई सानिध्यई प्रसादि श्रीजयतिलकसूरिनु शिष्य पंडित दयासिंहगणि बालावबोध वार्त्तारूपपणई लिखइ छइ नबुं करइ छइ सुखावबोधपणानइ
काजिइं गच्छनायकभट्टारकश्रीरत्नसिंहसूरि सद्गुरुनई उपदिसनई करी ।। [3046 ] आदिः- अहमिति ब्रह्मपदं परमेष्टिवाचकं सिद्धम् ।
ध्यायामि धवलममलं मूलं सकलार्थसिद्धीनाम् ॥१॥
अर्ह-अहमिति ब्रह्मपदं ध्यायामि हं ब्रह्मज्ञाननु पद पंचपरमेष्ठिनि ध्याउं....
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