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________________ १. प्रशस्त्याविसंग्रहः अन्त:- एवं खवउ कवचेणुवग्गहिओ तह परिस्सहवूणं । जाइय अलंघणिज्जो झाणसमा(म)त्थो य जिणइ अझ ॥१०९।। इति कवचद्वारं समाप्तम् । [575] आदिः- ॐ ॥ पहिलडं चैत्यवन्दन कीजह । उसभाइ मिण पणउं । ए गाथा भणी पहिलङ त्रिकाल देव वादउं । अतीत अनागत वर्तमान त्रणि चुवीसी बहुत्तरि तीर्थकर । हूं समरउ निरन्तर । हवइ अतीतकालि । केवलज्ञान १। निर्वाणी २ । सागर ३ । महायश ४ । विमल ५ । सर्वानु भूति ६ । श्रीधर ७ । दत्त ८ । ... .. अन्त:- जइ मे हुज्जपमाओ इमस्स देहस्स इमाइ वेलाए । आहारमुवहिदेहं चरमे समयम्मि वोसिरियं ।।५।। हुज्जाइ मम समए उवक्कमो जीवियस्स जइ मज्झं । एयं पच्चक्खाणं विउला आराहणाहेउ ॥६॥ देवगुरुधर्मतणी नित्यमेव स्मरणा करिवी । जिम जीव रहइ सदैव मांगलिक माला संपजइ ।। इति आराधना समाप्ता ॥ ग्रन्थाग्रम् २३५ ॥ [579] आदि:- बीयाओ पुवाओ अग्गणीआ इमं सुयमुयारं । संसेइमसंमुच्छिमजीवाणं जाणिऊणगं(?) ॥१॥ अन्तः- संसत्तयनिज्जुत्ति एसा साहुर्हि चेव पढियव्वा । अत्थो पुण सड्ढेहि सोयव्वो साहुपासाओ ॥२४॥ __ इति संसक्तनियुक्तिः समाप्ता । श्रीरस्तु सर्वसंघस्य तुष्टिपुष्टिरस्तु, लेखकस्य भद्र भवतु । [580 ] आदि:- ॥ ॐ ॥ अर्ह नमः ॥ तित्थयरे मुणिनाहे मुक्खपहपए सए य सोंडीरे । खोयगभावे वन्दे कम्मरयरहियजिणवीरे ॥१॥ नमिऊण गणहराई सुयनाणसमत्थपारगाईणं । पूयाविहि जह भणिया तह वंदणविहिं भणिस्सामि ॥२॥ अन्त:-- वन्दणपयरण एसो समयाओ विहिपवायपुवाओ । संखेवेणुद्धरिओ रइओ मुणिभद्दबाहुणा ॥५५॥ इति वन्दणपइन्नं समत्तं ।। थरादनयरे वीरप्रभुप्रसादात् लिपीकृतं मोहनधिजया(येम) ॥श्रीरस्तु । स्त आदिः - ॥ ॐ ॥ अहं नमः ॥ ति(ती)र्थना करनारा, मुनिना नाथ, मोक्षपदना मारगना देषानडहारा, पराक्रमवन्त, क्षायकभावे विराजमान तिणा प्रते वादं कर्मरज करीने रहीत एहवा जीत्या रागद्वेष ते वीर प्रते वांदुं ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018006
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year
Total Pages710
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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