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सप्ततिका षष्ठ प्राचीन कर्मग्रन्थ ( मा.गु. ) टबार्थ
मारुगूर्जर, गद्य,
पाकाहेम ६९७६, पृ. ३१ षष्ठकर्मग्रन्थ टबार्थसहित वि-१७मी, संपूर्ण
कुल हो. पृष्ठ-३१
सप्ततिका षष्ठ प्राचीन कर्मग्रन्थ (सं.) अवचूरि
सं., पद्य, आदि वाक्यः सिद्ध० सिद्धानि थायितुं ...
भांका २०६ - पे.क्र. ६, पृ. ४९-६४, नव्यकर्मग्रन्थावचूरि, वि-१५०७, संपूर्ण
पे. नाम- सप्ततिकावचूरि
कृति उपरथी प्रत माहिती
प्रत विशेष- प्र. पु. श्लोक-यादृशं पुस्तकं. कुल झे. पृष्ठ-४२, डीवीडी - ८७
सप्ततिका षष्ठ प्राचीन कर्मग्रन्थ (प्रा.) भाष्य
आचार्य अभयदेवसूरि प्रा. पद्य गा. १९०, आदि वाक्यः नमिऊण महावीरं कम्मट्ठपरूवणं.....
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कृ.विः अन्तवाक्य- अभयपुरं इच्छमाणेणं.
पाताहेसं ११२- पे.क्र. ६, पृ. ७७-९५ कर्मप्रकृतिप्रकरण आदि, वि-१२५८, संपूर्ण
ये नाम सप्ततिकाभाष्य, पे. विशेष पत्रांक ७७ की गाथा-६ नहीं है.
प्रत विशेष - हर्षपुरीय गच्छ में मलधारि अजितसुन्दरी गणिनी ने यह प्रति लिखवायी है., झेरोक्ष पत्र ४० व ४१ का दो बार झेरोक्ष हुआ है. कुल झे. पृष्ठ ४६, डीवीडी-७/१७
सप्ततिका षष्ठ प्राचीन कर्मग्रन्थ (सं.) टीका
आचार्य मलयगिरिसूरि, सं. गद्य, ग्रं. ३७८०, आदि वाक्य अशेषकर्माशतमः समूहभास्वानिवदीप्ततेजः ... पातासंघवी ६१-१- पे.क्र. २, पृ. १-६५, कर्मग्रन्थ ५-६ सटीक, संपूर्ण
पे. नाम- सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह ( सं . ) टीका
प्रत विशेष- पत्र २४४-२८३ नथी, अंतमां छेल्ली गाथानी टीका अने प्रशस्ति नथी. डीवीडी-३०/४९
पातासंघवी १५३-१, पृ. १२२, सप्ततिकाटीका, वि-१२२१, संपूर्ण
प्रत विशेष- पत्र २ थी ९ नथी.
डीवीडी-३५/५३
भांता ४३ पृ. ? सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह मलयगिरीयटीका वि-१४९०. संपूर्ण
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प्रत विशेष ग्रन्थाग्र- ३७८० विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. खरतरगच्छीय आ. जिनभद्रसूरिना राज्यमां आ प्रत
लखवामां आयी. जूनो नं. १८८० ?
सप्ततिका षष्ठ प्राचीन कर्मग्रन्थ (प्रा.) चूर्णि
कुल झे. पृष्ठ-१४४, डीवीडी-७०/७९
भांता ४४, पृ. ?, सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह मलयगिरीयटीका, संपूर्ण
प्रत विशेष - मात्र अंतिम गाथा की टीका का अंतिम आंशिक भाग एवं टीका प्रशस्ति नहीं है. कुल झे. पृष्ठ - ६०, डीवीडी-७०/८०
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प्रा. गद्य ग्रं. २०००, आदि वाक्यः (१) सिद्धिविवन्धव बन्धुदयसन्तखवणविहि...सो जयइ वीरो... ( २ ) सिद्धिविवधणवन्धुदय....सो जयइ वीरो.....
पातासंघवीजीर्ण ९०- पे क्र. १०, पृ. ?, कल्पसूत्रादि अनेक प्रकीर्णक ग्रन्थों के छूटक पन्ने, संपूर्ण
पे. विशेष- अपूर्ण व त्रुटक पत्र अस्त-व्यस्त हैं. झेरोक्ष पत्र - १- २२ व १०५-१४४. झे. पत्र १७ - २२ का पाठ १०५-११० पर भी मिलता है. बीच में अन्य दूसरी कृतियाँ हैं.
प्रत विशेष- त्रुटक-अव्यवस्थित.
कुल हो. पृष्ठ- १४४, डीवीडी-५८/६०
तालाद ३८३, पृ. १५६, सप्ततिकाचूर्णि वि-१३मी संपूर्ण
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कुल झे. पृष्ठ- ८०, डीवीडी- ९४/९६
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