________________
कृति उपरथी प्रत माहिती पे. नाम- सत्तरीयापगरण, पे. विशेष- गाथा-९१.
कुल झे.पृष्ठ-७८, डीवीडी-७/१७ भांता ४३, पृ. १९६, सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह मलयगिरीयटीका, वि-१४९०, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-३७८०. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. खरतरगच्छीय आ. जिनभद्रसूरिना राज्यमां आ प्रत
लखवामां आयी. जूनो नं.१८८०?
कुल झे.पृष्ठ-१४४, डीवीडी-७०/७९ भांता ४४, पृ. २०६, सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह मलयगिरीयटीका, संपूर्ण प्रत विशेष- मात्र अंतिम गाथा की टीका का अंतिम आंशिक भाग एवं टीका प्रशस्ति नहीं है.
कुल झे.पृष्ठ-६०, डीवीडी-७०/८० पाकाहेम ६९७६, पृ. ३१, षष्ठकर्मग्रन्थ टबार्थसहित, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-३१ सप्ततिका षष्ठ प्राचीन कर्मग्रन्थ-(प्रा.)चूर्णि
प्रा., गद्य, ग्रं.२०००, आदि वाक्यः (१) सिद्धिविवन्धव बन्धुदयसन्तखवणविहि...सो जयइ वीरो...(२)
सिद्धिविवधणवन्धुदय...सो जयइ वीरो... पातासंघवीजीर्ण ९०- पे.क्र. १०, पृ. ?, कल्पसूत्रादि अनेक प्रकीर्णक ग्रन्थों के छूटक पन्ने, संपूर्ण पे. विशेष- अपूर्ण व त्रुटक.पत्र अस्त-व्यस्त हैं. झेरोक्ष पत्र-१-२२ व १०५-१४४. झे. पत्र १७-२२ का पाठ
१०५-११० पर भी मिलता है. बीच में अन्य दूसरी कृतियाँ हैं. प्रत विशेष- त्रुटक-अव्यवस्थित.
कुल झे.पृष्ठ-१४४, डीवीडी-५८/६० तालाद ३८३, पृ. १५६, सप्ततिकाचूर्णि, वि-१३मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-८०, डीवीडी-९४/९६ वताकांति ३९९, पृ. ९६, सप्ततिका चूर्णि, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-३२, डीवीडी-९७/९८ सप्ततिकाप्रकरण-(प्रा.)चूर्णी आचार्य-मलयगिरिसूरि, प्रा., गद्य, ग्रं.२०००,
कृ.विः कर्ता? पाताहेसं ९६, पृ. ११६, सप्ततिकाप्रकरणचूर्णि, संपूर्ण
डीवीडी-७/१६ सप्ततिका षष्ठ प्राचीन कर्मग्रन्थ-(सं.)टीका
आचार्य-मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, ग्रं.३७८०, आदि वाक्यः अशेषकर्मांशतमः समूहभास्वानिवदीप्ततेजः... पातासंघवी ६१-१- पे.क्र. २, पृ. १-६५, कर्मग्रन्थ ५-६ सटीक, संपूर्ण
पे. नाम- सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह (सं.)टीका प्रत विशेष- पत्र २४४-२८३ नथी, अंतमां छेल्ली गाथानी टीका अने प्रशस्ति नथी.
डीवीडी-३०/४९ पातासंघवी १५३-१, पृ. १२२, सप्ततिकाटीका, वि-१२२१, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र २ थी ९ नथी.
डीवीडी-३५/५३ भांता ४३, पृ. ?, सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह मलयगिरीयटीका, वि-१४९०, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-३७८०. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. खरतरगच्छीय आ. जिनभद्रसूरिना राज्यमां आ प्रत
लखवामां आयी. जूनो नं.१८८०?
कुल झे.पृष्ठ-१४४, डीवीडी-७०/७९ भांता ४४, पृ. ?, सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह मलयगिरीयटीका, संपूर्ण प्रत विशेष- मात्र अंतिम गाथा की टीका का अंतिम आंशिक भाग एवं टीका प्रशस्ति नहीं है.
कुल झे.पृष्ठ-६०, डीवीडी-७०/८०
779