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कृति उपरथी प्रत माहिती कुल झे.पृष्ठ-५२, डीवीडी-३०/४९
प्रमाणमीमांसोद्धार
पातासंघवी ६२-२- पे.क्र. २२, पृ. १५०-१५४, सामाचारी आदि, संपूर्ण प्रत विशेष- अन्ते चन्द्रशेखरसूरि जन्म पत्रिका आदि.
कुल झे.पृष्ठ-५२, डीवीडी-३०/४९ प्रमाणरत्नमाला-(सं.)टीका
यति-अनुभूतस्वरुप, सं., गद्य, पाकाहेम ६८०९, पृ. २४, प्रमाणरत्नमालाटीका, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२५ प्रमाणवार्तिकसूत्र (वार्तिकसूत्र)
आचार्य-सिद्धसेन दिवाकर सूरि, सं., आदि वाक्यः (१) नमो हितार्थसम्प्राप्त्यै... (२) हिताहितार्थ सम्प्राप्त्यै... पाताखेत २६, पृ. २६७, वार्तिकवृत्ति, संपूर्ण पातासंघवी १५४-१- पे.क्र. १, पृ. १-६, वार्तिकसूत्र/वृत्ति, संपूर्ण
डीवीडी-३५/५३ पातासंघवी १८७-१- पे.क्र. १, पृ. १-३, वार्तिक आदि, वि-११८७, संपूर्ण
डीवीडी-३७/५४ पाकाभाभा ५३, पृ. ४०, प्रमाणवार्तिक स्वोपज्ञवृत्ति सह प्रथम परिच्छेद, वि-१६वी, प्रतिपूर्ण प्रमाणवार्तिकसूत्र-(सं.)वृत्ति (विचारकलिका वृत्ति), (वार्तिकसूत्र-(सं.)वृत्ति विचारकलिका)
आचार्य-शान्तिसूरि, सं., गद्य, आदि वाक्यः नमः स्वतः प्रमाणाय वचः प्रामाण्यहेतवे... पाताखेत २६, पृ. १, वार्तिकवृत्ति, संपूर्ण पातासंघवी १५४-१- पे.क्र.२, पृ. ७-१८४, वार्तिकसूत्र/वृत्ति, संपूर्ण पे. विशेष- केटलांक पानानी कोरो खरी गई छे. तेमज पानाना टुकडा थई गया छे.
डीवीडी-३५/५३ पातासंघवी १८७-१- पे.क्र. २, पृ. ४-१०१, वार्तिक आदि, वि-११८७, संपूर्ण
डीवीडी-३७/५४ प्रमाणवार्तिकसूत्र-(सं.)स्वोपज्ञ वृत्ति
आचार्य-सिद्धसेन दिवाकर सूरि, सं., गद्य,
पाकाभाभा ५३, पृ. ४०, प्रमाणवार्तिक स्वोपज्ञवृत्ति सह प्रथम परिच्छेद, वि-१६वी, प्रतिपूर्ण प्रमाणवार्तिकसूत्र-(सं.)वृत्ति (विचारकलिका वृत्ति), (वार्तिकसूत्र-(सं.)वृत्ति विचारकलिका)
आचार्य-शान्तिसूरि, सं., गद्य, आदि वाक्यः नमः स्वतः प्रमाणाय वचः प्रामाण्यहेतवे... पाताखेत २६, पृ. १, वार्तिकवृत्ति, संपूर्ण पातासंघवी १५४-१- पे.क्र. २, पृ.७-१८४, वार्तिकसूत्र/वृत्ति, संपूर्ण पे. विशेष- केटलांक पानानी कोरो खरी गई छे. तेमज पानाना टुकडा थई गया छे.
डीवीडी-३५/५३ पातासंघवी १८७-१- पे.क्र. २, पृ. ४-१०१, वार्तिक आदि, वि-११८७, संपूर्ण
डीवीडी-३७/५४ प्रमाणवार्तिकसूत्र-(सं.)स्वोपज्ञ वृत्ति
आचार्य-सिद्धसेन दिवाकर सूरि, सं., गद्य,
पाकाभाभा ५३, पृ. ४०, प्रमाणवार्तिक स्वोपज्ञवृत्ति सह प्रथम परिच्छेद, वि-१६वी, प्रतिपूर्ण प्रमाणसङ्ग्रह
सं., आदि वाक्यः श्रीमत्परमगम्भीर स्याद्वादामोघलाञ्छनं... पातासंघवी १३५-२- पे.क्र. ४, पृ. ६०-९२, स्त्रीनिर्वाण आदि, संपूर्ण
डीवीडी-३४/५३
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