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कृति उपरथी प्रत माहिती पादलिप्ताचार्यकथा
प्रा., आदि वाक्यः अस्थि इह भरहवासे नामेण कोसला पुरी रम्मा... पातासंघवी १३६-२- पे.क्र. २, पृ. ११-४३, सिद्धसेनदिवाकरचरित्र आदि, वि-१२९१, संपूर्ण पे. विशेष- पत्र १२-१३-१५-१६-३५-३९-४० नथी. ३७ पत्रनो एक टुकडो नथी.
डीवीडी-३४/५३ पापपडिग्घायगुणबीजाघानसुत्त जुओ - पञ्चसूत्रनो हिस्सो पापप्रतिघातगुणबीजाधान प्रथमसूत्र, प्राकृत पापप्रतिघातगुणबीजाधानसूत्र जुओ - पञ्चसूत्रनो हिस्सो पापप्रतिघातगुणबीजाधान प्रथमसूत्र, प्राकृत पापफलप्रतिबोधकगाथा
प्रा., पद्य, गा.१०, आदि वाक्यः पावेण जक्खुडीरो पावरई हीणजाइ कुलसीले... ___कृ.विः अन्त वाक्य-सो धन्नो जो धम्मं सव्वन्नुमयं सया कुणइ. पातासंघवीजीर्ण ९१- पे.क्र. १०, पृ. ४०-४B, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, प्रशमरति व प्राचीनकर्मग्रन्थ आदि, संपूर्ण
पे. विशेष- संपूर्ण. झेरोक्ष पत्र ४७-४८ पर है. उलटे क्रम से झेरोक्ष किया गया है. प्रत विशेष- जीर्ण-अव्यवस्थित.
कुल झे.पृष्ठ-४८, डीवीडी-५८/६० पापबुद्धिनृप-धर्मबुद्धिमन्त्रिकथा-गद्य
सं., गद्य, पाकाहेम १३२०७, पृ. ४, पापबुद्धिनृप-धर्मबुद्धिमन्त्रिकथा गद्य, वि-१८मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-४ पायच्छित्तवियार जुओ - प्रायश्चितविचार, प्राकृत पाययलच्छीनाममाला जुओ - पाइयलच्छीनाममाला, कवि-धनपाल, प्राकृत, गा.२८० पार्थपराक्रमव्यायोग
कवि-प्रह्लादन, सं., पद्य, श्लोक४३२, पाकाहेम ३९९१, पृ. १२, पार्थपराक्रमव्यायोग, वि-१४२६, संपूर्ण प्रत विशेष- सं.१४२६मां जिनदेवसूरिए लखेली प्रति.
कुल झे.पृष्ठ-८ पाकाहेम ६६५७, पृ. ६, पार्थपराक्रमव्यायोग, वि-१५मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६ पार्श्व जिनस्तव जुओ - धरणोरगेन्द्रस्तव, आचार्य-देवसूरि, संस्कृत, ग्रं.३९, गा.३६ पार्श्वचन्द्रने पूछेला बोलो
मारुगूर्जर, पाकाहेम ७९६९, पृ. ६, पार्श्वचन्द्रने पूछेला बोलो, वि-१७मी, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-६ पार्श्वजिन अमृतध्वनि
उपाध्याय-यशोविजयजी गणि[तपागच्छीय], मारुगूर्जर, पद्य,
पाकाहेम ९८२९- पे.क्र. २, पृ. २, चिन्तामणिस्तव व पार्श्वजिनअमृतध्वनि, वि-१८४१, संपूर्ण पार्श्वजिन मन्त्र
प्रा., गद्य, आदि वाक्य: नमो जिणपास विसहर धरणिन्दपदमावती... भांका १३२- पे.क्र. ३, पृ. ३०, संवेगचूडामणिप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण
कुल झे.पृष्ठ-२, डीवीडी-८५ पार्श्वजिन स्तुति
प्रा., पद्य, गा.९, आदि वाक्यः उद्दाममङ्गलसरोरूहसूरबिम्बं... पाताहेसं १६८- पे.क्र.८, पृ. १८आ-१९अ, दशवैकालिकसूत्र, पाक्षिक सूत्रस्तोत्रवृत्ति, स्तुति स्तवनादि, संपूर्ण
पे. विशेष- संपूर्ण. झेरोक्ष पत्र-२७-२८. प्रत विशेष- प्रारंभिक कुछेक पत्र उभय पार्श्व खंडित होने से पाठ भी खंडित है.
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