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कृति उपरथी प्रत माहिती सं., पद्य, पातासंघवीजीर्ण ८८- पे.क्र. ७, पृ. १२, उपदेशमाला, पार्श्वनाथाष्टक आदि अनेक ग्रन्थों के त्रुटक पत्र, त्रुटक
पे. नाम- कर्मप्रकृतिविषयक पाठ सह टीका, पे. विशेष- त्रुटक पत्र है. झे. पत्र-१७-२२ पर है. प्रत विशेष- नकामी., झेरोक्ष पत्र ८७ बेवडाएल छे.
कुल झे.पृष्ठ-९०, डीवीडी-५८/६० कर्मप्रकृतिविषयक पाठ-(सं.)टीका
सं., पद्य, पातासंघवीजीर्ण ८८- पे.क्र.७, पृ. १२, उपदेशमाला, पार्श्वनाथाष्टक आदि अनेक ग्रन्थों के त्रुटक पत्र, त्रुटक
पे. नाम- कर्मप्रकृतिविषयक पाठ सह टीका, पे. विशेष- त्रुटक पत्र है. झे. पत्र-१७-२२ पर है. प्रत विशेष- नकामी., झेरोक्ष पत्र ८७ बेवडाएल छे.
कुल झे.पृष्ठ-९०, डीवीडी-५८/६० कर्मप्रकृतिसङ्ग्रहणी जुओ - कर्मप्रकृति, आचार्य-शिवशर्मसूरि, प्राकृत, गा.४७५ कर्मबन्धगाथा
प्रा., पद्य, पातासंघवी १६५- पे.क्र. १३, पृ. -२२५-, उपदेशमाला आदि, संपूर्ण
पे. नाम- अजितशान्तिस्तव, पे. विशेष- गाथा-४१. संपूर्ण. झेरोक्ष पत्र-८५-८७.
___ कुल झे.पृष्ठ-९०, डीवीडी-३६/५४ कर्मविपाक नव्य प्रथम कर्मग्रन्थ (नव्य कर्मग्रन्थ प्रथम), (कर्मग्रन्थ नव्य प्रथम कर्मविपाक)
आचार्य-देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, गा.६१, आदि वाक्यः सिरिवीरजिणं वन्दिअ कम्मविवागं समासओ वुच्छं... पातासंघवी ६३-३, पृ. १८९, कर्मविपाकवृत्ति, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र २८-२९-४९-५०-८६-८७-१०७-१२७-१६५-१६८-१७० नथी.
डीवीडी-३०/४९ पाकाहेम ६९७४- पे.क्र. १, पृ. १३, कर्मविपाक-कर्मस्तव कर्मग्रन्थसस्तबक, वि-१७०६, संपूर्ण पे. नाम- कर्मविपाक कर्मग्रन्थ सह (गु.)स्तबक
कुल झे.पृष्ठ-१३ कर्मविपाक नव्य प्रथम कर्मग्रन्थ-(सं.)वृत्ति
आचार्य-देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, ग्रं.१७८२, पातासंघवी ६३-३, पृ. १८९, कर्मविपाकवृत्ति, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र २८-२९-४९-५०-८६-८७-१०७-१२७-१६५-१६८-१७० नथी.
डीवीडी-३०/४९ कर्मविपाक नव्य प्रथम कर्मग्रन्थ-(मा.गु.)स्तबक
मुनि-धनविजय, मारुगूर्जर, गद्य, पाकाहेम ६९७४- पे.क्र. १, पृ. १३, कर्मविपाक-कर्मस्तव कर्मग्रन्थसस्तबक, वि-१७०६, संपूर्ण पे. नाम- कर्मविपाक कर्मग्रन्थ सह (गु.)स्तबक
कुल झे.पृष्ठ-१३ कर्मविपाक नव्य प्रथम कर्मग्रन्थ-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, आदि वाक्यः श्रियाष्टाप्रातिहार्यरूप या च पुस्त्रिंशदतिशय समृद्ध्या... पाकाहेम ६९७३- पे.क्र. १, पृ. १-२, नव्यकर्मग्रन्थचतुष्टय अवचूरि, वि-१५११, संपूर्ण
पे. नाम- कर्मपाकावचूरि प्रत विशेष- प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-९ भांका १७४- पे.क्र. १, पृ. १-८, नव्यकर्मग्रन्थावचूरि-१ से ५ कर्मग्रन्थ, वि-१६२४, संपूर्ण
प्रत विशेष- प्रतिलेखन पुष्पिका. सर्वग्रन्थाग्र-३०००.
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