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कृति उपरथी प्रत माहिती कुल झे.पृष्ठ-५२, डीवीडी-८६ कर्मविपाक नव्य प्रथम कर्मग्रन्थ-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, आदि वाक्यः सिरि० कर्मणं विपाकोनुभवः कर्मविपाकः.. भांका २०६- पे.क्र. १, पृ. १-७, नव्यकर्मग्रन्थावचूरि, वि-१५०७, संपूर्ण प्रत विशेष- प्र.पु.श्लोक-यादृशं पुस्तकं.
कुल झे.पृष्ठ-४२, डीवीडी-८७ कर्मविपाक नव्य प्रथम कर्मग्रन्थ-(सं.)वृत्ति
आचार्य-देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, ग्रं.१७८२, पातासंघवी ६३-३, पृ. १८९, कर्मविपाकवृत्ति, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र २८-२९-४९-५०-८६-८७-१०७-१२७-१६५-१६८-१७० नथी.
डीवीडी-३०/४९ कर्मविपाक नव्य प्रथम कर्मग्रन्थ-(मा.गु.)स्तबक
मुनि-धनविजय, मारुगूर्जर, गद्य, पाकाहेम ६९७४- पे.क्र. १, पृ. १३, कर्मविपाक-कर्मस्तव कर्मग्रन्थसस्तबक, वि-१७०६, संपूर्ण पे. नाम- कर्मविपाक कर्मग्रन्थ सह (गु.)स्तबक
कुल झे.पृष्ठ-१३ कर्मविपाक नव्य प्रथम कर्मग्रन्थ-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, आदि वाक्यः श्रियाष्टाप्रातिहार्यरूप या च पुस्त्रिंशदतिशय समृद्ध्या... पाकाहेम ६९७३- पे.क्र. १, पृ. १-२, नव्यकर्मग्रन्थचतुष्टय अवचूरि, वि-१५११, संपूर्ण
पे. नाम- कर्मपाकावचूरि प्रत विशेष- प्रतिलेखन पुष्पिका.
कुल झे.पृष्ठ-९ भांका १७४- पे.क्र. १, पृ. १-८, नव्यकर्मग्रन्थावचूरि-१ से ५ कर्मग्रन्थ, वि-१६२४, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रतिलेखन पुष्पिका. सर्वग्रन्थाग्र-३०००.
कुल झे.पृष्ठ-५२, डीवीडी-८६ कर्मविपाक नव्य प्रथम कर्मग्रन्थ-(सं.)अवचूरि
सं., गद्य, आदि वाक्यः सिरि० कर्मणं विपाकोनुभवः कर्मविपाकः.. भांका २०६- पे.क्र. १, पृ. १-७, नव्यकर्मग्रन्थावचूरि, वि-१५०७, संपूर्ण प्रत विशेष- प्र.पु.श्लोक-यादृशं पुस्तकं.
कुल झे.पृष्ठ-४२, डीवीडी-८७ कर्मविपाक प्राचीन प्रथम कर्मग्रन्थ (प्राचीन प्रथम कर्मग्रन्थ कर्मविपाक), (कर्मग्रन्थ प्राचीन प्रथम कर्मविपाक) आचार्य-गर्गर्षि, प्रा., पद्य, गा.१६७, आदि वाक्यः ववगयकम्मकलङ्क वीरं नमिऊण कम्मगइकुसलं।...
कृ.विः गाथा १६६ थी १७८ सुधी मळे छे. पाताखेत ५- पे.क्र.८, पृ. १३४-१५७, उपदेशमालादि २१ ग्रन्थो, संपूर्ण - प्रत विशेष- श्रावकविधिकुलक जिनप्रभसूरिकृत पेटांक-१६ एवं २० दोनो पर है.
कुल झे.पृष्ठ-९२, डीवीडी-६१/६३ पाताखेत ११- पे.क्र. ३, पृ. ५४-७०, बृहत्सङ्ग्रहणी आदि १३ ग्रन्थो, वि-१२७८, संपूर्ण
पे. विशेष- गाथा-१६८. प्रत विशेष- झेरोक्ष पत्र १,८,३१,७४,९० कुल पांच पाना घटे छे.
कुल झे.पृष्ठ-११२, डीवीडी-६१/६३ पाताखेत १२- पे.क्र. १९, पृ. १९७-२१०, गृहस्थकुलकादि ३४ ग्रन्थो, संपूर्ण
पे. विशेष- गाथा-१६८. प्रत विशेष- ११५ मुं पानुं घटे छे.
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