________________ सील 100- अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सील विरज्यते परीवारो-नित्यं कर्कशभाषिणः / परिग्रहे विरक्ते च प्रभुत्वं हीयते नृणाम् // 2 // किंचअशिक्षितात्मवर्गेण, म्लानिं याति यतः प्रभुः / अतः शिक्षा प्रदातव्या, प्रत्यहं मृदुभाषया // 3 // स्वाधीने माधुर्ये, मधुराक्षरसंभवेषु वाक्येषु / किंनाम सत्त्ववन्तः, पुरुषाः परुषाणि भाषन्ते ॥४॥"इत्यादि। अत एव श्रीवर्द्धमानस्वामिना महाशतकमहाश्रावकः सत्येऽपि परुषे जल्पिते प्रायश्चित्तं चाहितम् इति / मतान्तरे पुनर-दुराराध्यताभिधानं षष्ठं शीलं तदप्यपरुषभाषित्वेन संगृहीतमेव। महाशतकसंविधानकं त्विदम् - रायगिहपुरसरोवर-विभूसहां गिहवई जलहरु व्य / सिरिनिलओ भमरहिओ, नालस्स पयं महासयगो ||1|| अट्ठट्ठकणयकोडी-निहिवुड्डिपवित्थरप्पउत्ताओ। दसगोसहस्सपरिग–य तस्स (चेव) अट्ठ वया // 2 // रेवइपमुहा तेरस-भज्जाओ तत्थ रेवईए उ। पिउगेहसंतियाओ, कोडीओ अट्ठ कणगस्स // 3 // दसगोसहस्समाणा, अट्ठवया सेसयाण पिउहरिया। इक्किककणयकोडी-दसगोसॅहस्सो पुढो य वओ॥४॥ अह तत्थ समोसरिओ, गुणसिलए चेइए जिणो वीरो। वंदणवडियाइगओ, पउरेहि समं महासयगो // 5 // नमिऊण तिहुयणगुरुं, उचियट्ठाणे निविट्ठओ एसो। भययं पि अभयनिस्सं-- दसुंदरं कहइ इह धम्म / / 6 / / इह दुलहं गिहिधम्म, लहिउं सावयजणेण पइदिवसं / तस्स विसुद्धिनिमित्तं दिणचरिया इह विहेयव्या / / 7 / / तथाहि - सुत्तविउद्धो सड्डो, सम्मं सुमरिज पंचनवकारं / जाइकुलदेवगुरुध-मसंगयं अह विचिंतिजा 8|| तो छव्यिहमावस्सय-मणुट्ठिउंन्हाइउं च दिवसमुहे। सियवत्थो मुहकोसं, काउं पूइज गिहबिंब / / 6 / / पच्चक्खाणं काऊ-ण इड्डिपत्तो महाविभूईए। गच्छिज्ज जिणिंदगिहे, पविसिज्ज तेहि समयविहिणा // 10 // पूरवि जिणं वंदि-ज्ज तयणु वञ्चिज सुगुरुपासम्मि। काऊण तेसि विणयं, पचक्खाणं च पयठेउं // 11 // धम्म सुणिज्ज सम्मं, सुद्धं वित्तिं गिहागओ कुजा। मज्झण्हे पुण षूयं, विहिज जिणनाहपडिमाणं / / 12 / / पडिलाभिज्ज मुणिंदे, फासुयएसणिय असणदाणेण / साहम्मियवच्छल्लं, करिज दीणाइअणुकंपं // 13 // बहुबीयणंतकाया-इवज्जियं भोयणं तओ कुजा। वंदे वि जिणवरिंदे, गुरुणो य विहिजं संवरणं / / 14 / / तो सत्थरहस्साई, कुसलमईहिं समं वियारिज्जा / इगभत्तासत्तो पुण, अँजिज्ज दिणहमे भागे // 15 // संझासमए गिहचे-इयाइँ पूरवि पुणवि वंदिज्जा। आवस्सयं वि हेउं, करिज सज्झायमेगग्गो / / 16 / / नियमाणुसाण तत्तो, कहिज धम्मं गिहागओ उचियं / पायं विसयविरत्तो, सीलं पालिज्ज पव्वेसु / / 17 / / कयचउसरणगमाई, सावजं चइय गंठिसहिएण। पंचनमुक्कारपरो, थेवं सेविज तो निदं // 18|| निद्वाविगमं चिंति-ज विसमविससंनिभं विसयसुक्खं / सुरसिवपुरगमणरहे, एवं च मणोरहे कुजा / / 16 / / सिरिअरिहंतो वेबो, सुनाणचरणा सुसाहुणो गुरुणो। तत्तं जिणपन्नत्तं, भवे भवे इय मह हविजा // 20 // जिणधम्मवासियमई, चेडो वि वरं हविज्ज सड्ढकुले। जिणधम्मेण विमुक्को, कयावि मा चक्कवट्टी वि // 21 // मलमलिणतणू जरमलि-णचीवरो सव्वसंगपरिमुक्को। महुयरवित्तिपहाणं, कया करिस्सामि मुणिचरियं / / 22 / / चइ कुसीलसंगं, गुरुपयपंकयरयं परिफुसंतो। जोगं अब्भस्संतो, भववुच्छेयं कया काहं / / 23 / / अंकट्ठियहरिणसिसुं, वणम्मि पउमासणेण आसीणं / वुड्डा मिगजूहपहू, अग्धाइस्संति मं कइया // 24 // मित्ते सत्तुम्मि मणि-म्मि लेठुए कंचणम्मि पाहाणे / मुक्खे भवे भमिस्सं, कया अहं निव्विसेसमई // 25|| एंव पइदिणकिरियं, कुणमाणो माणवो निहियमाणो / गिहिवासे वि वसंतो, आसन्नं कुणइ सिद्धिसुहं / / 26 / / इय सुणिय महासयगो, आणंदो विव गहित्तु गिहिधम्म / तुट्ठो सगिहम्मि गओ, विहरइ अन्नत्थ सामी वि // 27|| तस्संसग्गवसेण वि, पाविट्ठा रेवई न पडिबुद्धा / मज्जरसपिसियगिद्धा, खुद्दा धणियं धणे लुद्धा / / 28 / / अइबिसयगिद्धिगहिला, सा अन्नदिणम्मि नियसवत्तीओ। छ स्सत्थपओगेणं, छ च हणइ विसपओगेणं / / 26 / / दुपयचउप्पयधणकण-गभाणेइ तासिं संतियं लई। बहुपाणघयाणी कू- रमाणसा चिट्ठइ सयावि // 30 // बुढे य अमाघाए, पलमलहंती कयावि तो एसा / माराविय सवयाओ, आणावइ गोणपायदुगं // 31 // चउदसवरिसवसाणे, कुडुंबभारे ठवित्तु जिवसुयं / पोसहसालं पविसई, विरत्तचित्तो महासयगो ||32|| सा मज्जपाणमत्ता, हावविलासाइविविहभावेहिं / तं उवसगइ बहुसो, अहियासइ सुठु स महप्पा // 33 / / सम्म समणोवासग-पडिमा इक्कारसा वि फासेइ। नाऊण चरिमसमयं, विहिणा पडिवज्जएऽणसणं // 34 // सो सुहभाववसुप्प-न ओहिनाणेण लवणजलहिम्मि। उत्तरवजहिसासुं, नियइ पुट्ठो जोयणसहस्सं // 35 / / उत्तरओ हिमवंत, हिट्ठा रयणाइलोलुयं नरयं / चुलसीवाससहस्स-ट्ठिइयं जाणेइ पासेइ / / 36|| इत्तो य मज्जमत्ता, सा पावा रेवई तहिं पत्ता। उवसम्गिउं पवत्ता, दुस्सहरागग्गिसंतत्ता // 37 // तो किमियमेरिसी इय, वियकमाणेण ओहिनाणेणं / नायं तीसे सयलं, चरियं तह नरयगामित्तं // 38 // ईसि कुविएण भणिया, हा पाविठू ! निकिट्ठदुचिट्टे!। निल्लजे ! अञ्जवि पा–व पुंजमजेसि केवइयं // 36 // जं सत्तरत्तअंतो, आलस्सयवाहिणा समभिभूया / मरिऊण तं गमिस्ससि, निरयावासम्मि लोछुयए / / 4 / / इय सुणिय अवगयमया, अइकुविओ अज्ज मे महासयगो। मरणभयवेवियंगी, दुहियमणा सा गया गेहे // 41 // इत्तो च तत्थ पत्ते-णं वीरनाहेण गोयमो भणिओ। तं वच्छ गच्छ पभणसु, मह वयणेणं महासयगं / / 42 // भद्द ! न कप्पइ उत्तम-गुणाण सड्ढाण भासिउ फरुसं।