________________ सिवमह 572 - अमिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सिवभह जओधम्माओ धणलाभो, तत्तो कामो तओ य संसारो। धम्मस्स अज्जण ता, मूलाउ चिय दढमजुत्तं / / 6 / / इय ते उवहासपरे, दठु जक्खो फुरंतगुरुकायो / उप्पाडिय सियफरसुं, पहाविओ तेसि हणणत्थं // 10 // तयणु भयलोललोयण तरलियतारा पकंपिरसरीरा / लग्गा मुणिचलणेसुं, भणिरा "तं अम्ह सरणं' ति // 11 // ते दठ्ठ साहुसरणे, जक्खो जाओ पसंतमन्नुभरो। पारियउस्सग्गेणं, अह मुणिणा ते इमं वुता / / 12 / / (भद्दत्यादि धम्म' शब्दे चतुर्थभागे 2660 पृष्ठे उक्तम् / ) जं पिह धणभोगाई, भणियं भवकारणं तमवि इत्थ। नेयं किलिट्ठसत्ता-ण न उण इयराण जं भणियं // 13 // सा काऽयि कला झायं-ति नियमणे जामिऊण परमत्थं / न्हायति घडसएण वि, छिप्पंति न बिंदुणा चेव // 14|| सुचइ य भरहसगरा-- इणो इहं सुचिरभुत्तवरभोगा। हाउ अकिलिट्ठमणा, लोयग्गठियं पयं पत्ता // 15|| इय सोउं पडिबुद्रा, पुणो पुणो खामिउं तमवराहं / तस्स मुणिस्स समीवे, ते दो वि वयं पवजंति / / 16 / / मुणिय जइजुग्गकिरिया, गुरुमूले पडियबहुयसुत्तत्था / सुचिरं उग्गविहारा, खंतिपहाणा तवंति तवं / / 17|| अह असुहकम्मवसओ, सिरिओ सिढिलेइ चरणकरणभरं। धरइ मणे जाइमयं, न कुणइ विणयं गुरूसुं पि // 18|| तो सिवभद्दो सिरियं, भणेइ भो भद्द ! चरणकरणम्मि। भवसयसहस्सदुलहे, खणं पि किह होसि, सिढिलमणो।।१६।। गुरुविणकपरो निचं, मणं पि मा कुणसु जाइमयमेवं / जं जाइमयाईहिं, दुहिओ परिभमइ भवगहणे // 20 // उक्त च - जाइकुलरूपबलसुय-तवलाभिस्सरिय अट्ठमयपत्तो। एयाई चिय बंधइ, असुहाइँ बहुं च संसारे // 21 / / तो भद्दनियं दोसं, एयं गीयत्थसुगुरुमूलम्मि। तं आलोयसु सम्म, नाउं आलोयणाइविहिं // 22 // तद्यथापडिसेवा पडिसेवग-द्रोसगुणा गुरुगुणा य इह नेया। सम्मविसोहीइ गुणा, सम्ममणालोयओ सिक्खा // 23 // तह पडिसवादप्प-प्पमायणाभोगसहसकारे य। आउरआवइसंकिय-भयप्पओसा य वीमंसा // 24 // वग्गणमाई दप्पो, इह कंदप्पा उ भन्नइ पमाओ। विस्सरियमणाभोगो, सहसाकारा अकम्ह ति // 25 // छुद्दतण्हवाहित्थो , जं सेवइ आउरा भवे एसा / दव्वाइअलंभे पुण, चउव्विहा आवई होइ // 26 // संकिय मा कम्हा मा-इ संकिऍ सीहमाईणं च भयं / कोहाइओ पओसो, वीमंसा सेहमाईणं // 27|| (दार)"आकंपइत्ता अणुमाणइत्ता", जं दि8 वायरं व सुहमे वा। छन्नं सघाउलयं, बहुजणअव्वत्त तस्सेवी / / 28|| इय पडिसेवगदोसा, आकपिय तत्थ भत्तिमाईहिं। गुरुअवराह लहुया- णुमाणओ तहय आलोए / // 26 // जं दिलृ ति परेणं, आलोयइ वायरं ति नहु सुहुमं / अह सुहुमं आलोयइ, विस्संमत्थं न उण थूलं // 30 // छन्नं अव्वत्तरसं, सद्दाउलयंति तुरियसघणं।। तं चेव य पच्छित्तं, आलोयइ बहुजणाण पुरो॥३१।। अव्वत्तस्स अगीय-स्स तस्स आसेवगो य तस्सेवी। इत्तो दस आलोयग-गुणा इमे हुंति नायव्वा // 32 // जाइकुलविणयउवसम-इंदियजयनाणदंसणसमग्मा। अणणुत्ता वि अमाई, चरणजुया लोयगा भणिया // 33 // जाइजुओ पाएणं, न कुणइ असुहं कयं तु आलोए। कुलसंपन्ना सम्म, पच्छित्तं वहइ गुरुदिन्नं // 34 / / नाणी किचाकिच्चं, जाणइ सद्दहइ दंसणी साहिं। चरणी तं पडिवज्जइ, सेसपया हुंति पयडत्था // 35|| आयारव माहारव, ववहारुव्वीलए पकुव्वी य। अपरिस्सावी निजव, अवायदंसी गुरू भणिओ // 36 // नाणायाराइजुओ, आयास्व सीसकहियमवराहं / धारतो अहारव, ववहारो पंचहा इणमो // 37 / / आगमसुयआणा धा- रणा य जीयं च होइ ववहारो। केवलिमणो हि चउदस, दसनवपुव्वी य पढमो त्थ / 38|| आयारपकप्पाई, सव्यं सेसं सुयं विणिद्दिट्ठ। देसंतरट्ठियाणं गूढपयालोयणा आणा // 36 // गीयत्थाओ पुटिव, अवधारिय धारणे तहिं दिते। पायच्छित्त जीयं, रूदं वा जं जहिं गच्छे / / 40|| लज्जाइनिव्वहंतं, अवलज कुणइ सो उ उव्वीलो। गरुयस्स वि पावस्स उ, सुद्धिसमत्थो पकुव्वी य // 41 // अप्परिसाविगभीरो, निजवगो दुब्बलस्स निव्वहगो। नरगाइदुक्खदंसी, अवाक्दंसी ससल्लाणं / / 42 / / अवि यसल्लुद्धरणनिमित्तं, खित्तम्मी सत्त जोयणसयाई / काल बारस वासा- गीयत्थगवेसणं कुजा // 43 // जओनासेइ अगीयत्थो, चउरंग सव्वलोयसारंग। नट्ठम्मि य चउरंगे, नहु सुलहं होइ चउरंग // 44 // किंचअक्खंडियचारित्तो, वयगहणाओ य जो य गीयत्थो। तस्स सगासे दंसण, वयगहणं साहिगहणं च / / 45|| एवंविहगुरुपासे, व(ल)जागारवभयाइ मोत्तूणं / सव्वं पि भावसल्लं, उद्धरियव्वं जओ भणियं // 46 // जहा बालो जपतो, कज्जमकजं च उज्जुओ भणइ / तं तह आलोइज्जा, मायामयविप्पमुक्को उ // 47|| दारलहुयाल्हाईजणणं, अप्पपरनिवित्तिअज्जवं सोही। दुक्करकरणं अट्ठउ, निस्सल्लत्तं च सोहिगुणा // 48|| आलोयणा परिणओ, सम्मं संपडिओ गुरुसगासे। जइ अंतरावि कालं, करिज आराहगो तह वि // 46 // आगंतुं गुरुमूले, जो पुण पयडेइ अत्तणो दोसे। सो जइ न जाइ मोक्ख, अवस्सममरत्तणं लहइ॥५०॥ जो पुण इय नाऊण वि, सम्मं न कहेइ अत्तणो सल्ले / चोएयव्यो तो सो, निसीहभणिएहि नाएहिं / / 51 / / जइ कस्सइ नरवइणो, एगो आसो समग्गगुणकलिओ। तस्स पभावेण निव-स्स वट्टए सव्वसंपत्ती / / 5 / /