________________ सिवभह 873 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सिवभूइ अह सेसनिवा पभगति, नियनियठाणेसु संठिया एवं / भो अत्थि कोइ पुरिसो, जो तं आसं अवहरिजा // 53|| भणियं चारनरेहि, सो नरपंजरगओ सया कालं। हरिउं तेण न तीरइ, अह वुत्तं एगपुरिसेण // 54 // जइ नवरं मारिजइ, रना भणियं इमं पिता होउ / तत्तो सो तत्थ गओ, न लहइ तुरयस्स अवगासं // 55|| तो णेण खुधियाकं- टएण सरमुहठिएण वरतुरओ। कहमवि विद्धो सो ते-ण सल्लिओ सुहुमसल्लेण // 56 // सो निचं परिहप्पइ, भुंजतो वि हु पभूयजवसाइ। तो रन्ना सो विज्ज-स्स दाइओ तेण भणियमिणं / / 57|| न हि कोइ धाउखोहो, अस्थि हु अव्वत्तसल्लमेयस्स। तो जमगसमगमेसो, उल्लित्तो सुहमपंकेण // 5 // संल्लपएसे आसो, उण्हत्तणओ य पढममुवाओ। नाऊण तओ सल्ले, नीणिय आसो कओ सज्जो ||56|| अन्नो पुण जह आसो, अणुधियसल्लो न भुज्जपरिहत्थो। तह साहू वि ससल्लो, कम्मजयं काउ असमत्थो // 60 / / देवाणुप्पिय ! सम्मं, लज्जागारवमयाइ ता मुतुं / आलोयसु नियसल्ले, मा मरसु ससल्लमरणेण // 61 / / जओ || न वि तं सत्थं व विसं, व दुप्पउत्तो व कुणइ वेयालो। जंतं व दुप्पउत्तं, सप्पो व पमाइओ कुद्धो // 62|| जं कुणइ भावसल्लं, अणुद्धियं उत्तमढकालम्मि। दुल्लमबोहीपत्तं, अणंतसंसारियत्तं च // 63 / / इय पभणिओ वि सिरिओ, तओ अणालोइओ अपडिकंतो। चरणं विराहिऊणं, उववन्ना भवणवासीसु // 6 // सिवभद्दो उण कंटग-- पहछलणानायओ कह वि जायं / नाउं नियमइयारं, आलोयइ झ त्ति गुरुमूले // 65|| आलोइयपडिकंतो, सम्म आराहिऊण सामन्नं / उववन्नो पवरसुरो, सोहम्मे हेमवन्नाभो // 66 / / तो चविउं इह भरहे, वेयड्ढे गयणवल्लहपुरम्मि / सिरिकणयकेउरन्नो, देवइनामाइ देवीए // 67 // जाओ पहाणपुत्तो, सिवचंदो नाम पत्ततारुन्नो। परिणेइ वसंतसिरिं, निवधूयं पढियबहुविज्जो // 68|| सिरिओ वि तओ वट्टिय, जाओ तस्सेव बंधवो लहुओ। कयसोमचंदनामो, कमेण तरुणत्तमणुपत्तो // 66 // अह सोमचंदकमर-स्स पढियनिरवञ्जपवरविज्जस्स। जाया कयावि बुद्धी, मायंगिं साहिउं विजं // 70|| तीसे य इमो कप्पो, मायंगगिहट्ठिएण कइ वि दिणे / साहणविही विहेया, परिणियमायंगधूएण ||71 / / तयणु मकामं पिउणा, पारिजंत्तो वि सोयरेण पुणो। सुबहु खलिजंतो वि हु, गओ कुणालाइनयरीए // 72 // तत्थ बहुदाणपुव्वं, मायंगसुयं विवाहए एग। सिढिलियविजासाहण-वावारो गलियसुद्धमई // 73 // अगणियसकुलकलंको, दूरं पब्भट्ठपुन्नपब्भारो। तीए चिय अणुरत्तो, कमेण जायाणि डिंभाणि ||74|| इय तस्स मलीमस चि-ट्टियस्स अचंतपावनिरयस्स। पिउभायपमुहलोए-ण संकहा दूरओ चत्ता / / 7 / / अन्नदिणे सिवचंदो, हरिकरिरहजोहजूहपरियरिओ। पूरंतो गयणयलं, विमाणमालाहिं सव्वत्तो // 76 / / पवरविमाणारूढो, सिरउवरिधरिजमाणसियछत्तो / पासपइट्ठियखयरी, जणढालिजंतसियचमरो / / 77 / / अग्गट्ठियमागहगण-पहुपयउियविविहसमररिउविजओ। कलकंठकंठगायण--गिजंतमहंतगुणनिवहो // 78|| सुचिरं सुरसरिसुरगिरि-वणेसु तह जंबुदीवजगईए। पउमदरवेइगाए, पकीलिउं सगिहमणुवलिओ ||7 कह वि कुणालानयरी-इ उवरि वचंतओ निए वि इमं / नेहेणं ओयरिऊ-ण सायरं भायरं भणइ |10|| किं भो बंधव ! तुमए, इहेव अचंतनिंदियकुलम्मि। काएण व मयगकले- वरम्मि बद्धा रइ दूरं / / 81|| किं मूढ ! विस्सगंध-प्पबंध दढगाढपिहियनासउड। दूरेण व्वयमाणं, जणं इओ नहु पलोएसि ?||2|| एगत्थ अत्थिउक्कर–ड भरियमन्नत्थ भसिरसाणगणं / अवरत्थ गिद्धवायस-दुप्पिच्छं किं न नियसि इमं ?||83|| तं सोउ सोमचंदो, अयंडतडिदंडताडिओ व्व दढं। विच्छाओ लज्जावस-मिलंतनयणो भणइ एवं // 4 // भो भाय ! को न याणइ, दुहमसममिमं परं कहेसु इमं / पुव्वभवज्जियदुक्क-म भारदेसिण केण अहं // 8 // विमलकुलवासविमुहो, विमुक्कतुहसरिसबंधुपडिबंधो। एरिसविजाइवावा-र सायरे पाडिओऽम्हि हहा ?||86|| तो विहिणा सिवचंदो, सबिम्हओ सरिय रोहिणिं देविं / पुच्छइ कहेसु भयवइ !, मह बंधवपुव्वभवचरियं / / 7 / / उरुओहिनाणमुणियं-कहिउँ सयलं पि तस्स पुव्यभवं / देवीए रोहिणीए फुडवयणमिमं समुल्लवियं / / 8 / / जाइमयाई पुट्वि, न सम्ममालोइयं जमेएण। तेणेसो तुह भाया, विडंबणं एरिसं पत्तो // 86 // जं सुहमे वि हु खलिए, निस्सल्ला लोयणा कया तुमए। तं जाओ सि इय सुही, इय भणिय तिरोहिया देवी ||6|| सोउमिणं सिवचंदो, पुव्वभवं सरिय भणइ भो भाय ! / अज्ज वि तोडे वि लहुं, कुकुडुंबसिणेह मुंचमिमं // 61|| नियदुक्कयाइँ आलो-इऊण काऊण तिव्वतवचरणं / एयस्स दुक्खनिवह-स्स देसु, सलिलंजलिं भाया ! 192|| अह भणइ सोमचंदो, भाय ! इमा भारिया मह अणाहा। आसन्नपसवसमया, इमा डिम्भाइँ लहुयाई ||3|| ता कहसु मुएमि कहं, इय तं मूढ़ निएवि सिवचंदो। दूरं न धम्मजुग-त्ति चयइ पत्तो नियं नयरं / / 64|| मोयाविऊण पिउणो, कहमवि चारणमुणिंदपयमूले / पडिवन्नसंजमभरो, सिद्धिं पत्तो धुयकिलेसो // 65 // इयरो वि काउ विविहं, पावं कालम्मि कालमासज्ज / पत्तो नरए घोरे, दुहिओ भमिही भवकडिल्लं // 66 // श्रुत्वेति सद्विकटनाघटनानिरस्त कर्मव्रजस्य शिवभद्रमुनेश्चरित्रम् / वाचंयमा नियमिताखिलदोषजाला, __ यत्नं मुदा स्खलितशुद्धिविधौ व्यधत्त / / 67|| इति शिवभद्रमुनिकथा / ध० र० / सिवभूइ-पुं० (सिवभूति) स्थविरस्यार्यधनगिरेः वासिष्ठगोत्रस्य स्वनामख्यातेऽन्तेवासिनि कौत्सगोत्रे आचार्य, कल्प० 1 अधि०४ क्षण / स्वनामख्याते रघुवीरपुरवास्तव्ये साहसिकम