________________ सिव 568 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सिव डूणं गामागरनगर० जाव विहराहि त्ति क द जयजयसदं / तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता दब्मेहि य कुसेहि य पउंजंति / तए णं से सियभद्दे कुमारे राया जाए महया वालुयाएहि य उति रएति वेति रएत्ता सरएणं अरणिं महेति हिसवंत० वन्नओ० जाव विहरइ / तए णं से सिवे राया अन्नया सरएत्ता अग्गि पाडेति अ० ता अगि संधुक्केइ अ० त्ता उयाई सोभणंसि तिहिकरणदिवसमुहुत्तनक्खत्तंसि विपुल समिहाकट्ठाइं पक्खिवइ समिहाकट्ठाई पक्खिवित्ता अगिंग असणपाणखाइयसाइमं उवक्खडाति उवक्खडावेत्ता | उज्जालेइ अ० त्ता, अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाइं समादहे। मित्तणाइविय० जाव परिजणं रायाणो य खत्तिया आमंतेति तं जहा- "सकहं वकलं ठाणं, सिज्जा भंडं कमंडलुं // आमंतेत्ता तओ पच्छा पहाए० जाव सरीरे भोयणवेलाए दंडदारं तहा पाणं, अहे ताई समादहे // 1 // " महुणा य घएण भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए तेणं मित्तणात्ति नियगसयण० य तंदुलेहि य अग्गि हुणइ, अगि हुणित्ता चरुं साहेइ, चरुं जाव परिजणेणं राएहि य खत्तिएहि य सद्धिं विपुलं साहेत्ता बलिवइस्सदेवं करेइ, बलिवइस्सदेवं करेत्ता अतिहिपूर्य असणपाणखाइमसाइमं एवं जहा तामली० जाव सकारेति करेइ अतिहिपूयं करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेति। संमाणति सक्कारेत्ता संमाणेत्ता तं मित्तणाति० जाव परिजणं तए णं से सिवे रायरिसी दोचं छट्ठक्खमणं उवसंपजित्ता णं रायाणो य खचिए य सिवमदं च रायाणं आपुच्छइ आपुच्छिवा विहरइ, तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चे छट्ठक्खमणपारणगंति सुबहुं लोहीलोहकडाहकडुच्छुयं० जाव भंडं गहाय जे इमे आयावण-भूमीओ पचोरुहइ आयावण० ता एवं जहा गंगाकूलगा वायपत्त्था तावसा भवंसि तं चेव० जाव तेसिं अंतिए पढमपास्णगं नवरं दाहिणगं दिसं पोक्खेति पो०त्ता दाहिणाए दिसाए जमे मह राय पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चेव मुंडे भवित्ता दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइए, पव्वइएऽवि यणं आहारमाहारेइ। तए णं से सिवरायरिसी तचं छट्ठक्खमणं समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ-कप्पइ मे उवसंपजित्ता णं विहरति / तए णं से सिवे रायरिसी सेस तं जावज्जीवाए छ8 तं चेव० जाव अभिग्गहं अभिगिण्हइ अभिगि चेव नवरं पचच्छिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं ण्हित्ता पढमं छट्टक्खमणं उवसंपत्तिा णं विहरइ। तए णं से सेसं तं चेव० जाव आहारमाहारेइ / तए णं से सिवे रायरिसी सिवे रायरिसी पढमछट्ठक्खमणपास्णगंति आयाबधभूमीए चउत्थं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तए णं से सिवे पचोरुहइ आयावणभूमीए पचोरहित्ता वागलक्थनियत्थे जेणेव रायरिसी चउत्थं छहक्खमणं एवं तं चेव नवरं उत्तरदिसं सए उडए तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता किढिण पोक्खेइ उत्तराए दिसाए वेसमणे महाराया पत्थाणे पत्थियं संकाइयगं गिण्हइ गिण्हित्ता पुरच्छिमं दिसं पोक्खेइ पुरच्छिमाए अभिरक्खउ सिवं, सेसं तं चेव० जाव तओ पच्छा अप्पणा दिसाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवे आहारमाहारेइ / (सू०४१७) तए णं तस्स सिवस्स रायरिरायरिसी अभि० 2, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य सिस्स छ8 छटेणं अनिक्खित्तेणं दिसाचकवालेणं० जाव तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य बीयाणि य आयावेमाणस्स पगइमद्दमाए०जाव विणीययाए अन्नया कयावि हस्यिाणि य ताणि अणुजाणउ ति कटु पुरच्छिमं दिसं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापोहमग्गणगवेसणं पसरति पुर० त्ता जाणि य तत्थ कदांणि य० जाव हरियाणि करेमाणस्स विब्भंगे नामं नाणे समुप्पन्ने, से णं तेंण विभंगयताइंगेण्हइ गेण्हित्ता किढिणसंकाइयं भरेइ किढि०त्ता दन्भे णाणेणं समुप्पन्नेणं पासइ अस्सि लोए सत्त दीवे सत्त समुढे तेण य कुसे य समिहाओ य पत्तामोडं च गेण्हेइ गेण्हित्ता जेणेव परं न जाणति, न पासति / तएणं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स सए उडए तेणेव उवागच्छइ 2 त्ता किढिणसंकाइयगं ठवेइ अयमेयारूवे अब्भत्थिए० जाव समुप्पज्जित्था अस्थि णं मम किढि० ता वेदि वड्डे वेदि ववित्ता उवलेवणसंमजणं करेइ अइसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा उव०त्ता दब्भसगम्भकलसाहत्थगए जेणेव गंगा महानदी तेणेव सत्त समुद्दा तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, एवं संपेहेइ उवागच्छइ गंगामहानदी ओगाहेति 2 त्ता जलमजणं करेइ 2 एवं संपेहेत्ता आयावणभूमीओ पचोरहइ आया० हि त्ता त्ता जलकीडं करेइ करेत्ता जलाभिसेयं करें ति करेत्ता आयंते वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उदागच्छइ उवा०त्ता चोक्खे परमसुइभूए देवयपितिकयकज्जे दब्भसगब्भकलसाह- सुबहुं लोहीलोहकडाहकडुच्छुयं० जाव भंडगं किढिणसंकाइयं त्थगए गंगाओ महानईओ पचुत्तरइ पञ्चुत्तरित्ता जेवेण सए उडए | च गेण्हइ गेण्हित्ता जेणेव हथिणापुरे, नगरे जेणेव तावसाय