________________ सामाइय 730 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सामाइय कोण्हुआ / / 1 / / तेण भण्णति- पत्तपुडपडिच्छण्ण! जणयस्स अयसकारिए! चुक्का पतिं च जारंच, कलुणं झायसि बंधकी! / / 2 / / '' एवं भणिया ता बिलिया जाता, ताहे सो सयं रूव दसेति, पण्णवित्ता वुत्तापुटवयाहि, ताहे सो राया तज्जिती, तेण पडिवण्णा, सकारण शिक्खता, देवलोय गता एवमकामनिज्जराए मेण्ठस्स।।२।। बालतवेणवसंतपुर नगर, तन्यासिविधरं मारिए उच्छादित इंदणागो नाम दार ओ. सा एहो, छुहित गिलाणो पाणितं मग्गति, जाव सच्चाणि मतानिछति। दार पि लागण कंटिया सक्किय / ताहे सो सुणइयच्छिहेग जिगताण तम्मि परे कप्परे भिक्ख हिडति, लागोस देइ सदेसभूतन शिकार, एक शो संवड्। इलो यो सत्यवाहो रायगिह जा उकामो घासण घोरगति रोण सुतं. सत्यंग समं परिथतो / तत्थ तेण सत्य कुरो लद्धी--'सो "जमि। जिपण, नितिगदिवसे अच्छति, सत्यवाहेण दिडो, चिंतेति पूर्ण पर उपवासिओ सो य अव्वत्तलिंगो, बितियादिवसे हिंडतस्स सद्धिणा बहु गिद्ध च विणण, सो तेण दुवे दिवसा अजि--प्रणए अच्छात। सत्यवाही गणति-एस छट्टण्णकालिओ,तरस सद्धा जाता / सो तलियदिवस हिलो सत्यवाहेण सहावितो. कीसऽसि क न णागतो? तुहिको अनि जाणइ.जधाछट्ट कतलय नाहे से दिएणं, तागवि अण्णेवि दी दिवसे अच्छावितो। लोगोऽवि परिणतो, अपारस गिमता पर सवित गति : अण्णे भणति-सो एगपिंडिओ. लेणत अट्टापदला.णिए गिना...मा अण्णास खणं गेण्हेजारि जान ' गजामति माह अभि / गता णगर तेण से णियघर मढो कतो, ताधे सीस मुंगावति कासा-. पाणि चौवराणि गेहति,ताधे विवरखाला जाणे जागे तापतरूपवि घर शाच्छति,ताधे जाविसं से पारणयंता वसं से लोगोमा पडित्यति ततो लोगोण प्रगति--करस पडिकि तति माथे लोगेण जाणणानिमित्त भरी कदा, जो देति स ताडेति, साह लोगो गाविसति, एवं यच्चलि कालो / साभी य मोसरितो,ताहे साधू संदिसावे / / भणिता-मुहुरा अच्छह, अनसणा, अनि जिमिते मामा सेयरह : गोलमो य भणि ता. गम वयोण भणासि भो अणेगपिंडिया ! एमपिडिता बटुमिच्छति, ताह गातमसागिणा भणितो रुखो, तुम अगाणि ण्डिसताणि आहारह, अहं एवं पिंड मुंजामि, तो अहं चेव एगपिंडिओ, मुहत्तन्तरस्स उपसंतो चितेति- एते मुसं वदति, किह होगजा? लद्धा सुती, होमि अणगापेडितो, उदिवस मम पारणय तद्विवस अगाणि पिडसताणि क्रीरंति, एते पुण अकतमकारितं भुजति तं सच्चं भणंति / चिन्ततण जाती सरिता, पत्तेयबुद्धोजा तो, अज्झयण भासति। इंदणाण अरहता वुत्त, सिद्धा या एवं बालतवेण सामाइय लद्ध तण // 3 // दाणेग, जधा-एगाए वच्छवालीए पुत्तो, लोगेण उस्सवे पायसं ओवक्खड़ित। तत्थासन्नघरे दारगरूवाणि पासति पायसं जिमिताणि / ताधे सो मायर भणेइ-ममऽवि पायसं रधेहि; ताहे णत्थि ति सा अद्धिती परुण्णा, ताओ सएज्झियाओ पुच्छति, णिबंधे कथितं। ताहि अणुकंपाए अण्णाए वि अण्णाए वि आणीतं खीर साली तंदुलायाताधेथरीएपायस रद्धा ततो लस्स दारयस्स पहायरस पायसस्स घतमधुसजुत्तस्स थालं भरेऊण उद्वित। साधूय गासखवणपार-णते आगतो, जाय थेरी अंतो वाजला ताव तेण धम्मोऽवि में होउ ति तरल पायसस्स तिभागी दिष्णो। पुणो चितिल - अतिथीव बितिओ तिभागो दिण्णो पुणी विणण चितित-एथ जति अण्ण अवक्खलगादिछुभति तोऽविणस्सति, ताहेतइतिभागी दियो। ततो तरस ते दव्वसुद्धेण दायगसुद्धेण गाहगसुद्धेण तिविहण निकरणसुद्धेण भावेण देवाउए णिबद्धे ,ताधे माता से जाणतिजिमिओ.पुणरवि भरित, अतीव रकत्तणेण भरितं पोट्ट / ताचे रत्ति विसूइयाए मतो देवलोगं गतो,ततो चुतो रायगिहे नगर पधाणस्स धाणावहर स पुत्तो भद्दाए भारियाए जातो / लोगो य गभगते भणतिक्यपुन्नो जीवो जो उववण्णो, ततो से जातस्स णाम कतं कता यो त्ति / बङ्कितो,कलाओ गहियातो, परिणीतो, माताए दुललियगोट्टीए ठूढो, तेहि गणियाघरं पवेसितो, बारसहिं बरिसहि गिद्धणं कुल कलेलो वि सोग भिगच्छति. मातापिताणि से मताणि, भजाय से आभरणगाणि चरिमदिवस पसी / गणि-तामायाए णातंणी स्सारो कतो. साधे ताणि अण्ण च सहस्सं पडि-विसजितं, गणिया माता भण्णइ-निच्छुभउ एसो रसा च्छति, ताह चारिय गिओ घरं सजिजति, उत्तिण्णो बाहि अच्छति, ताहे दासीए भग्णति-णिच्छूढोऽवि अच्छसि? ताह निययधरय सडियपडियं गतो,ताह से भला संभमेणं उहिता, ताह से सव्यं कथितं, सामा अकुणा भवति-अस्थि किंधि? जा अन्नहि जाइत्ता ववहसमिताहं जाणि आभरणगाणि गणितामात ए जर सहस्स कप्पासमाज दिग ताणि से दसिताणि / सत्था य लदिवस क पिदम गंतुकामओ, सो त भंडमोल्ल गहाय तेण सत्थेण समं पधादिता, बाहिं वेउलियाए खट्ट पाडिऊणं सुत्तो। अण्णस्स य वाणिययस्स ! पाए सुत, जधा-तव पुत्तो मतो वाहणे भिन्ने, तीए तस्स दव्व दिण्णं, करसइ कधिनसि, तीए चितित-मादध्वं जाउ राउल, पविसिहिति मे अपुत्ताए, ताहे रत्तिं तं सत्थं एति, जा कचि अणाह, पारोमि, ताहे तं पासति, पडिबोधित्ता पवेशितो, ताहे घर नेतूण रोवति-चिरणग त्ति पुत्ता ! सुण्हास चउण्हताण कधेति-एस देवरो भे चिरणट्ठओ। ताओ तस्स लाइताआ. तत्थ विवारस बरिसाणि अच्छति।तत्थं एक्केकाए चत्तारिपंच इरूवाणि जाताणि। थरीए भणित एत्ताह णिच्छुभतु, ताओ ण तरंति रितु / साधे ताहि संबलमादगा कता, अंतो रयणाण भारता, वर से एवं पाओग्ग होति, ताधे वियर्ड पाएता ताए चेव देवउलिया। आसीसए से संबल ठवत्ता पडियागता / सोऽवि सीतलएगण पवणेणं संबुद्धो पभात च, सोऽवि सत्थो तद्विवसमागतो। इमाए विनवसओ पेसिआ, ताहे उट्ठबित्ता घरं णीतो, भज्जा से संभमेण उट्टिता, संबलं गहित, पविट्ठो, अब्भगादीणि करेति। पुत्तो-यसे तदा गडिभणीए जाता, सो ए